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स्त्री रागकथा श्रवण - स्त्रियों का राग भरी कथाओं को सुनने
का त्याग |
उनके मनोहर अंगो को बार-बार देखने का त्याग |
पूर्व में भोगे हुए भोगों का स्मरण करने का त्याग ।
गरिष्ठ भोजन का त्याग तथा
अपने शरीर को संस्कारित करने का त्याग ।
ये ब्रह्मचर्य व्रत की पाँच भावनायें हैं । उन भावनाओं का निरन्तर चिन्तन करते रहने से ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा होती है ।
यह मनुष्य जन्म करोड़ों भवों के बाद बड़ी दुर्लभता से प्राप्त होता है । उसको पाकर स्वर्ग मोक्ष की सिद्धि कराने वाले ब्रह्मचर्य का पालन सभी को अवश्य करना चाहिये । इस संसार में जो ब्रह्मज्ञानी हुए हैं, और ब्रह्मस्वरूप हुए हैं, वे सब ब्रह्मचर्य के पालन से ही हुए हैं । अनेक जीवों ने जो अनन्त सुखस्वरूप मोक्ष की प्राप्ति की है, वह एक ब्राह्मचर्य के प्रताप से ही की है। भगवान जिनेन्द्र देव ने ब्रह्मचर्य को मोक्ष सुख की सीढ़ी बतलाया है । अनेक गुणों से भरपूर और महापवित्र ऐसे इस ब्रह्मचर्य व्रत का पालन सभी को करना चाहिये, क्योंकि इसी के बल पर मुनिराज संसार रूपी समुद्र से पार होते हैं, ऐसे ब्रह्मचर्य की रक्षा प्रयत्नपूर्वक करना चाहिये ।
जो सती, शीलवती नारियाँ होती हैं, वे अपना पूरा जीवन कष्ट के साथ बिता सकती हैं, लेकिन अपने पति को छोड़कर अन्य पुरुष को बुरी निगाह से कभी नहीं देखतीं और न ही कभी अपने पति की निन्दा सुन सकती हैं ।
सती अंजना ने बाईस वर्ष तक अपने पति के सामने रहते हुये
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