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2. विषयोपयोग सम्बन्धी चिन्तन करने से जिन पुरुषों ने शास्त्र अध्ययन, प्रशम भाव और संयम से अपने मन को स्वस्थ कर लिया है, वे भी स्त्रियों के रूपादि का चिंतन करने मात्र से भ्रष्ट हो गये | भावदेव अपनी स्त्री के स्मरण करने से अपने मन को ध्यान में स्थिर नहीं कर पाये । उनकी कथा शास्त्र में इस प्रकार आती है।
सेठानी रेवती के भवदेव एवं भावदेव नामक दो पुत्र थे । भवदेव ने बालपने मे ही अपने पिता के साथ दीक्षा धारण कर ली। कुछ वर्षों के पश्चात् पिता की समाधि हो जाने पर भवदेव मुनिराज विहार करते हुए उपनी देह की जन्मभूमि की तरफ आये। उन्हीं दिनों वहाँ भावदेव के विवाह का कार्यक्रम चल रहा था । भावदेव नागला नामक धर्मनिष्ठ कन्या के साथ विवाह करके लौट रहा था । रास्ते में उन्हें अपने भाई मुनि भवदेव के दर्शन हुए और उनके उद्बाधन से भावदेव को संसार से विरक्ति आ गई, परन्तु वह अपने मन में सोचने लगा- इसने मेरे साथ विवाह किया और अपने माता-पिता को छोड़कर मेरे साथ यहाँ आई, अगर मैं दीक्षा लूँगा तो इसका निर्वाह कैसे होगा ? यह अपने मन में क्या सोचेगी? ऐसा विचार कर वह अपनी नवविवाहित पत्नी के मोह में मोहित हो, रागवश दीक्षा लेने से पीछे हट रहा था । तब नवविवाहिता नागला ने अपने पति के मन की बात भाँप ली और दीक्षा लेने की भावना देखकर बोली- "आप यदि अपने कल्याण - पथ पर अग्रसर होना चाहते हैं तो मैं आपके पथ में कंटक नही बनूँगी । मेरी ओर से दीक्षा लेने की सहर्ष स्वीकृति है ।" यह सुनकर भावदेव ने मुनिदीक्षा ले ली। मुनि बनने के पश्चात् भी उसका मन बार-बार नागला की चिन्ता में व्यग्र रहने लगा । उन्होंने मुनि - अवस्था के बारह वर्ष इसी प्रकार पत्नी की चिन्ता में विता दिये ।
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