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राजा की आँखों से आँसू बह निकले । बूढ़े महावत ने राजा को सलाह दी कि हाथी को बाहर निकालने का एक ही तरीका है कि बैंड लाओ, युद्ध का नगाड़ा बजाओ और सैनिकों की कतार इसके सामने खड़ी कर दो। राजा ने तुरन्त आदेश दिया कि युद्ध का नगाड़ा बजाया जाए और सैनिकों को अस्त्र-शस्त्र के साथ सुसज्जित किया जाए। कुछ ही घंटो में सारी तैयारियाँ हो गईं। जैसे ही नगाड़ा बजा, और सैनिकों की लम्बी कतार देखी, तो हाथी को एक दम से स्फुरणा हुई और वह एक ही छलांग में बाहर आ गया । नगाड़े की आवाज ने उसे भुला दिया कि मैं बूढ़ा हूँ, कमजोर हूँ और कीचड़ में फँसा हूँ । नगाड़े की आवाज ने उसके सुप्त मनोबल को जगा दिया। युद्ध के बाजे बज जायें और वह रुका रह जाये, ऐसा कभी नहीं हुआ था ।
जीवन में मनोबल ही श्रेष्ठ है । जिसका मनोबल जागृत हो गया उसको दुनिया की कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती । जा मन से ही कमजोर है, वह किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो सकता ।
श्रीमद् रायचन्द्र जी गुजरात में हुये हैं । वे कहा करते थे हमें सदैव ध्यान रखना चाहिये कि काल सिर पर सवार है । यदि हमें यह ध्यान बना रहे तो फिर हम कभी गाफिल नहीं हो सकते, हमारे मन में विकार नहीं आ सकते ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने लिखा है कि जन्म के समय सभी कोरे कागज की भांति पैदा होते हैं, किन्तु मृत्यु के क्षण में सारी कथा उस पर लिखी जाती है। महापुरुषों ने मृत्यु को एक शिक्षण कहा है। जैसे कोई बच्चा स्कूल में जाता हो और एक ही कक्षा में फेल होता रहे, तो बार-बार उसी कक्षा में पढ़ना पड़ता है । मृत्यु भी एक महाशिक्षण है । जब तक हम अमरत्व को प्राप्त नहीं कर
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