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महिला भी यह सुनकर के अवाक रह जाती है कि मैं तो शोक कर रही हूँ, कौन - सा मंत्र जप रही हूँ, उसने महाराज से कहा- आप मुझसे मजाक तो नहीं कर रहे हैं, मेरी हँसी तो नहीं उड़ा रहे हैं । मुनि महाराज ने उससे कहा कि नहीं, बिल्कुल नहीं- तुम एक ऐसे महामंत्र का जाप कर रही हो जिसका संसार की कोई भव्य आत्मा ही जाप कर पाती है। लेकिन मंत्र थोड़ा-सा अधूरा रह गया है, इसे पूरा कर लो तो तुम्हारा कल्याण हो जायेगा |
महिला ने आश्चर्य से पूछा कि अधूरा मंत्र ?
मुनि महाराज ने कहा कि हाँ ! तुम अधूरा मंत्र जप रही हो । अभी तुम जप रही थीं कि मेरा इस संसार में कोई नहीं है, इसके आगे बस इतना और लगा दे कि तू भी इस संसार की नहीं है, तू भी किसी की नहीं है, न तेरा कोई है, न तू किसी की है। हरेक प्राणी अपने-अपने कर्मों का फल भोगते हैं, तुम किसी का कुछ नहीं कर सकते। इस प्रकार की भावना भाते हुये इस प्रकार का मंत्र जपना प्रारम्भ कर दो, तो तुम्हारा कल्याण हो जायेगा। बात महिला की समझ में आ गई, इससे उसका सारा शोक शांत हो गया कि मैं किसके लिये रो रही हूँ, जिसके लिये मैं रो रही हूँ, हो सकता है कि वह स्वर्ग में चला गया हो और वहाँ के सुख में आसक्त हो, और मैं यहाँ पर रो-रो कर अपना समय एवं शरीर नष्ट कर रही हूँ । महिला के मन में विचार आया कि मैं किसके लिये रोऊं । क्या वह मेरे लिये रो रहा होगा कि मैं अपनी पत्नी को छोड़कर के आया हूँ? वो तो जहाँ होगा, वहीं आसक्त हो गया होगा। क्योंकि जो जीव जहाँ पर जाता है, उसी पर्याय में वहीं पर आसक्त हो जाता है। वो मन में किंचित भी विचार नहीं करता है कि मेरी पत्नी मेरे लिये रो रही होगी । यह पत्नी का झूठा भ्रम है कि मेरा कोई नहीं इस संसार में ।
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