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कर पा रहे हो । इस प्रकार हमारे भावों की शुद्धि का दान पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
सभी को बड़े उत्साह और पवित्र भावों से दान अवश्य देना चाहिये । जो मनुष्य लक्ष्मी का संचय करक पृथ्वी के गहरे तल में उसे गाड़ देता है, वह मनुष्य उस लक्ष्मी को पत्थर के समान कर देता है । इसके विपरीत जो मनुष्य अपनी बढ़ती हुई लक्ष्मी को सर्वदा धर्म के कार्यों में लगा देता है, उसकी लक्ष्मी सदा सफल रहती है । किसी ने कहा है
दान बिना नहिं मिलत है, सुख सम्पत्ति सौभाग्य | कर्म कलंक खपाय कर, पावे शिव पद राज ||
अर्थात् दान से ही संसारी जीवों को महान सुख की प्राप्ति होती है । दान के प्रभाव से शत्रु भी शत्रुता छोड़कर अपना हित करने लगते हैं । दानी जीव ही संसार में महान यश को प्राप्त करता है। कहाँ तक कहा जावे इस संसार में दान के प्रभाव से ही जीव अत्यन्त दुर्लभ भोग भूमि के सुख, देव, विद्याधर, प्रतिनारायण नारायण, चक्रवर्ती, वासुदेव आदि पदों को प्राप्त करता है । और अन्त में समस्त सम्पत्ति को छोड़कर, उत्तम त्याग धर्म को धारण कर, समस्त कर्मों को नष्ट कर शिव पद अर्थात् मोक्ष सुख को प्राप्त कर लेता है ।
हमारी आत्मा संसार के महासमुद्र में डूब रही है, इसका एक मात्र कारण यह परिग्रह का बोझ है । आज का मानव श्रीमन्त बनने के ख्वाब में धर्म की ओर से दरिद्री होते जा रहे हैं । त्याग और दान करना तो दूर रहावे तो स्वयं के लिये भी सम्पत्ति का उपभोग नहीं करना चाहते।
ऐसा ही एक सेठ था, वह अपार सम्पत्ति होते हुये भी स्वयं के
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