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पंडित जी कहते हैं कि जब हम दान देने लगेंगे तब तो हमारे पास आओगी न। तब लक्ष्मी कहती है कि जब तुम दान देने लगोगे तब तुम्हें तुम्हारे लड़के मारने लगेंगे। पंडित जी कहते हैं कि मैंने तो सारा धन अपने हाथों से कमाया है, मुझे वे क्यों रोकेंगे और इतने में आँख खुल जाती है और उनका स्वप्न भंग हो जाता है ।
पंडित जी अपने घर जाते हैं और अपने लड़कों से कहते हैं कि बेटा तुम सब दान किया करो, दान करने से लक्ष्मी आती है । लड़के कहते हैं पिता जी धन संग्रह करने के लिये होता है, खोने के लिये नहीं। बेटा पिता जी का कहना नहीं मानते। अब पंडित जी स्वयं दान देने की कोशिश करते हैं । परन्तु जब भी वे कुछ दान देते, बेटे पंडित जी की दुर्दशा कर देते ।
पंडित जी सोचते हैं - काश मैं शुरू ही दान में प्रवृत्ति रखता तो बच्चों का भी वही अभ्यास रहता और मेरी भी दुर्दशा न होती । ध्यान रखना धर्म के लिये दान देने से धन कभी नहीं घटता, जब भी घटता है तो पाप के उदय से ही घटता है । जिस प्रकार कुँए का जल निकालने से कभी नहीं घटता एवं विद्या कभी देने से नहीं घटती, उसी प्रकार धन की दशा है । अर्थात् धन देने से बढ़ता है, घटता नहीं है । ज्यों-ज्यों धन का दान किया जाता है, पुण्य की प्राप्ति होती है । जो लोग दान देने से धन का घटना, समझते हैं, वे भूल करते हैं ।
आचार्य कहते हैं - हे भव्य जीवो! मनुष्य जीवन को सफल बनाने के लिये दान अवश्य करना चाहिये । जैसे खेती का मुख्य फल धान्य होता है, वैसे ही पात्रदान का मुख्य फल मोक्ष होता है और जैसे खेती का गौण फल भूसा होता है, उसी प्रकार पात्रदान का गौण
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