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मिठाई का आनन्द मिलेगा। सहेली क कहने से नमक की डली को अलग रख दिया और मिठाई को खाया तो मीठा स्वाद पाकर प्रसन्न हो गई। । यों ही चींटी की तरह जब तक हम लोग इस परिग्रह को रखे हैं तब बतलाओ शुद्ध आत्मा का विलक्षण आनन्द कैसे चख सकत हैं। जब तक हम इस आरम्भ-परिग्रह का त्याग नहीं करते तब तक आत्मस्वरूप में स्थिरता प्राप्त नहीं कर सकते। परमार्थ से आत्म शान्ति का उपाय यही है कि परपदार्थों का त्याग किया जाय और आत्म परिणति का विचार किया जाये ।
विषय-कषाय, आरम्भ-परिग्रह का त्याग ही संसार बन्धन से मुक्ति का उपाय है। यह परिग्रह तो जंजाल का कारण है । अतः जितनी जल्दी हो सके इससे निवृत्त होने का प्रयत्न करना चाहिये ।
और सदा दान देन की भावना रखना चाहिये । दान देने से स्व व पर दानों का कल्याण होता है |
किसी कवि ने लिखा है – “दातारों का मजा इसी में खाने और खिलाने में | कंजूसों का मजा इसी में, जोड़-जोड़ मर जाने में ।।"
जो दानशील प्रवृत्ति का मानव हाता है, वह हमेशा परोपकार में अपने धन को लगाता है और जो कंजूस आदमी होता है, वह हमेशा धनार्जन करता रहता है और मरकर उसी धन की रक्षा हेतु सर्प योनि को धारण कर लेता है।
एक राजा ने अपने नगर के सभी विद्वानों को भोजन का निमंत्रण दिया। सभी विद्वान् भोजन करने के लिये राजमहल में आय | राजा ने सभी को एक दूसरे के सामने मुँह करके बिठा दिया और सभी की थालियों में लड्डू परोसे गये | साथ ही राजा न आदश
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