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अब तो उसने घर से निकलना ही बंद कर दिया | जब रायचन्द्र जी को पता चला तो उन्हें बड़ा कष्ट हुआ। वे उस व्यापारी के घर पहुँचे | रायचन्द्र जी को दखकर वह घबड़ा गया, उसे लगा य सौदे की रकम माँगने आये हैं। वह हाथ जोड़कर बोला-हम अपना सब कुछ बेचकर आपकी पूरी रकम चुका देंगे आप मुझ पर विश्वास कीजिये | रायचन्द्र जी ने उससे सौद का कागज बुलाया और उसके टुकड़े-टुकड़े कर कहा-रायचन्द्र जैन है, वह दूध पीता है, खून नहीं पी सकता। इस सौदे की वजह से आपने घर से निकलना तक बंद कर दिया। मैं इस सौदे को यहीं समाप्त कर देता हूँ | और उन्होंने लाखों रुपये का त्याग कर दिया। यही एक सच्चे ज्ञानी की पहचान
मनुष्य जन्म पाकर बुद्धिमानी तो इसी में है कि जो छोड़ना पड़ेगा, उसे पहले ही छोड़ दिया जाय | और यदि सर्व त्यागी नहीं बन सकते तो, कम-से-कम इस दान के माध्यम से हमें अपनी विषय-कषायों को तो अवश्य ही कम करना चाहिये | जब भी भाव हों तुरन्त दान कर दना चाहिये क्योंकि भाव बदलत देर नहीं लगती।
युधिष्ठिर पांडवों में सबसे बड़े थे | वे दानवीर माने जाते थे । एक बार एक याचक न आकर दान की याचना की। वे किसी कार्य में व्यस्त थे ता कह दिया थाड़ी देर बाद आना। जब भीम का मालूम पड़ा तो वे आये और बोले-भैया! ये भी कोई बात हुई। क्या आपने मृत्यु को जीत लिया है? क्या अगल क्षण का आपका भरोसा है, कि आप बचेंगे ही? अभी दे दो अन्यथा विचार बदलने में देर नहीं लगती। त्याग का भाव आते-आते भी राग का भाव आ सकता है | क्योंकि राग का संस्कार अनादि काल का है | अतः जब भी दान देने का भाव हो, उसी समय दे दना चाहिये ।
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