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शक्ति अनुसार दान अवश्य देते रहना चाहिये | सद्भावना पूर्वक दान देने से बहुत पुण्य का संचय होता है। दान में मात्र भावना देखी जाती है।
एक मनुष्य कहीं जा रहा था। रास्ते में उसे एक भूखी कुतिया मिली, जिसने बच्च पैदा किये थे, बड़ी भूखी थी। कुतिया को उस मनुष्य ने जो भी चार-छ: रोटियाँ थीं खिला दी, उस दिन वह उपवास करके रह गया | उस पुरुष ने अपने जीवन में बहुत से यज्ञ भी किये थे | एक बार जब वह बहुत गरीब हा गया तो उसने सोचा कि अब हम अपना एक यज्ञ राजा का बेच आयं तो कुछ गुजारा चलेगा। सो राजा के पास यज्ञ बेचने गया। वह राजा कहता है कि तुमने कौन-कौन से यज्ञ किये हैं सो बताओ, उसने अनेक यज्ञ बताये | वहीं एक जानकार मंत्री बैठा था तो उसने कहा कि महाराज आप यज्ञ न खरीदें| इसने एक बार एक कुतिया को 4-6 राटी खिलाकर उसके प्राण बचाये थे, उसमें जा पुण्य इसने कमाया था वह इसके सभी यज्ञों में कमाये पुण्य से भी अधिक है, अतः आप वह खरीद लें। वह सोचता है कि दो-चार रोटी खिलाने का इतना महत्त्व बता रहे हैं और जिसमें हजारों रुपये खर्च हुये उसका महत्त्व नहीं बताते हैं | उस कुछ श्रद्धा हुई वह बोला-महाराज! मैं यह पुण्य न बेचूंगा | आप मेरे सारे यज्ञ खरीद लें पर इसको न बेचंगे ।
जिनकी स्थिति थोड़ी है, उसी के अन्दर अपनी शक्ति के अनुसार दान करते हैं, धर्म करते हैं ता उनको बड़ा पुण्य होता है। अतः अपनी शक्ति अनुसार सभी को दान अवश्य करना चाहिये | दान दने में मात्रा को नहीं, भावना को देखा जाता है। सद्भावों पूर्वक कम दान का भी वृहत्फल प्राप्त होते देखा जाता है | अतः निरन्तर पवित्र मन से दान अवश्य देना चाहिये ।
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