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लग जाती है तो रात भर नींद नहीं आती।
रात्रि का दूसरा प्रहर बीता, तीसरे प्रहर की बेला आयी, किन्तु अभी तक सम्राट श्रेणिक की आँखों में नींद न उतर सकी। उनके शयन कक्ष में शीतल मंद प्रकाश था, गवाक्षों से ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी, मुलायम-मुलायम सेज थी, सारा वातावरण प्रिय और प्रशान्त था किन्तु महाराज श्रेणिक का हृदय एकदम अशान्त था| मन में अशान्ति और बेचैनी इतनी उमड़-घुमड़ रही थी कि महाराज की पलकों पर खुमारी की छाया तक नहीं दिखाई देती थी।
सारी रात सम्राट कभी सज पर लेटते, कभी करवटें बदलते फिर बेचैनी से शयन कक्ष में चहल-कदमी करने लगते । वे किसी गंभीर विचारधारा में बह रहे थे । और समय-असमय बड़-बड़ा रहे थे। वे बड़े चिन्तित थे कि भगवान महावीर ने मेरे प्रश्न के उत्तर में कहा था कि मुझे नरक जाना पड़गा | सुनकर मैं तो सन्न रह गया | मैं इतना बड़ा सम्राट, अपार शक्ति और वैभव का स्वामी | इतन राजाओं का अधिपति, क्या नरक जान के योग्य हूँ? मैं नरक नहीं जाऊँगा, नहीं जाऊँगा ..... | माना कि मुझस कुछ भूलें हुई हैं तो क्या उनका प्रतिकार नहीं हो सकता है? पर ध्यान आता है, यह जगत विख्यात है कि भगवान महावीर की वाणी कभी मिथ्या नहीं होती। मुझे भी उनकी वाणी पर अटूट श्रद्धा है।
कुछ सोचकर ....... फिर भी मैं उनका अनन्य भक्त हूँ और उनकी कृपा मुझ पर बरसती रहती है। साथ ही मुझ पूर्ण विश्वास है कि भगवान महावीर पूर्ण समर्थ हैं। वे चाहें तो मेरा उद्धार कर सकते हैं | मैं अड़कर, हठकर, चरण थाम कर विनती करूंगा कि हे भगवन किसी भी कीमत पर मुझे नरक जाने से बचाईय, मैं नरक नहीं जाना
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