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भोजन करना शुरू किया । सेठ के यहाँ बना पाँच हजार व्यक्तियों का भोजन खाकर भी वह भूखी रही, तो सेठ ने कहा कि घर में जितनी सामग्री है, सब बनाकर इच्छा का पेट भरो, नहीं तो वह मुझे खा जायेगी ।
इस प्रकार उसने घर की सारी सामग्री बनाकर खिला दी, तो भी उसकी शान्ति न हुई । इस प्रकार जब वह सेठ उस इच्छा नाम की लड़की का पेट भरने में असफल रहा, तो वह उससे बचने के लिये भागा । लेकिन वह लड़की भी उस सठ के पीछे भागी 'मैं तो तुम्हें अवश्य खाऊंगी।' सेठ ने भागते-भागते सारे गाँव का चक्कर लगा लिया । अन्त में वह उन्हीं मुनिराज के पास पहुँचा कि महाराज मुझे बचाओ, इस लड़की की भूख तो मुझे खा जायेगी । महाराज को देखकर वह लड़की दूर से ही रुक गयी । महाराज बोले- यदि तुम सुखी रहना चाहते हो तो अपनी इच्छाओं को घटाओ। देखो, तुम इस इच्छा के कारण ही व्यर्थ में परेशान हो रहे हो। तुम सोच रहे थे कि इसे एक व्यक्ति का भोजन कराकर शान्त कर दूँगा । इसी प्रकार प्रत्येक मानव सोचता है कि बस, मेरी यह इच्छा पूरी हो जाये तो मुझे शान्ति मिलेगी। लेकिन यह इच्छा कभी शान्त नहीं होती । इसलिये यदि तुम अपना कल्याण करना चाहते हो तो इच्छा निरोध रूपी तप करके इन इच्छाओं को घटाते - घटाते समाप्त कर दो, तो तुम्हें भी धीरे-धीरे शान्ति मिल जायेगी और पूर्ण इच्छाओं के समाप्त होते ही मोक्ष की प्राप्ति होगी, जहाँ पूर्ण निराकुल अनन्त सुख मिलेगा । इच्छाओं के कारण ही राग-द्वेष होता है, यदि इच्छायें घटनी शुरू हो गयीं तो समझो कि मोक्ष का मार्ग मिल गया ।
गृहस्थी तो एक जंजाल है। गृहस्थी के चरित्र को आचार्य गुणभद्र स्वामी ने बताया है कि वह तो हाथी के स्नान के समान है ।
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