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तुम्हें जो चीज पसन्द हो उठा लो। अगर वह खली का टुकड़ा उठाता है, तो क्या उसे आप विवेकी कहेंगे? अरे! उस ता आप पागल कहेगें | तो इसी तरह समझिये कि यहाँ मेरे सामने दो चीजें हैं, विष और अमृत, इन्द्रिय-विषय और आत्मस्वभाव | यहाँ मानों कोई यह कह कि, भाई! तुम क्या लेना चाहते हो? इनमें से तुम्हें जो चीज पसन्द हो, सा उठा लो। तुम जो चाहोगे, वह तुम्हें मिल जायेगी। विष लेना चाहो ता विष मिल जायेगा और अमृत लेना चाहा, तो अमृत मिल जायेगा और अगर वह यह कहे कि भाई! मुझे तो विष लेना है। ता बताओ उसकी मूखर्ता पर हंसी आयेगी की नहीं? ज्ञानी जन अज्ञानी जनों की इस तरह की प्रवृत्ति का देखकर हंसते हैं।
इन्द्रिय-विषयों को भागने के कारण ही ये सब दुःख भागने पड़ते हैं पशु बने, पक्षी बने, पेड़ पौधे बने, नाना प्रकार की कुयोनियों में जन्म-मरण करके दुःख सहन करने पड़ रहे हैं। विषयों में प्रीति होना बहुत अंधकार है। और इस अंधकार में ही चुलबुल करता हुआ यह जगत का प्राणी बरबाद हाता रहता है।
सागर में एक कान्सटेबिल था। वह एक वेश्या में आसक्त था । जो कुछ धन-दौलत उसक पास थी, वह सब उसने धीमे-धीमे वेश्या को दे दी। वह अब बड़ी दरिद्री अवस्था का हो गया । निर्धन हा जाने के कारण अब वेश्या ने उस अपने घर आने से मना कर दिया। तो वह कान्सटेबिल उसके घर के सामने ही रातदिन पड़ा रहता था। किसी न पूछा-आप यहाँ क्यों पड़े रहते हा? ता वह बोला-मुझे इस वेश्या से प्रेम है, पर यह मुझे अपने घर तो आन नहीं दती लकिन जब कभी वह घर से बाहर निकलती है, ता मैं उसे देख लेता हूँ |
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