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होने की प्रेरणा देती थी। दूसरी बात है - पांव रखते ही पाप लगता है', इसका आशय यह है कि प्रतिपल प्रवृत्ति से कर्मों का आस्रव होता है । और अंतिम बात है - 'नजर उठाते ही जहर चढ़ता इसका मतलब यह है कि सब तरफ इन्द्रिय-विषयों की सामग्री फैली हुई है और वह विषय सामग्री निरन्तर इन्द्रियों को प्रभावित करती है | आँख उठाकर थोड़ा भी देखते हैं तो मन में राग-द्वेषादि विकारी भाव होने लगते हैं । भावी तीर्थंकर होने वाले राजा श्रेणिक चेलना के चित्र को देखकर सम्पूर्ण राज्य का काम-काज भूल गये । उसकी प्राप्ति के लिये (श्रेणिक पुत्र) अभय कुमार ने जैन धर्म का पालन करने का ढोंग किया और मायाचारी से छलकर चेलना का हरण कर लाये ।
पाँच इन्द्रियों के भागों, आरम्भ, परिग्रह आदि को छोड़ने पर ही आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है । जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को संकोचता है, उसी प्रकार जो संयमी मुनि इन्द्रियों की सेना समूह को संकोचता व वशीभूत करता है, वही मुनि दोषरूपी कर्दम से भरे लोक में विचरता हुआ भी, दोषों से लिप्त नहीं होता अर्थात् जल में कमल के समान अलिप्त रहता है ।
श्री सहजानन्द वर्णी जी ने लिखा है जिस मुनि का मन इन्द्रियों के विषयों से किंचित मात्र भी कलंकित नहीं होता, उस मुनि को जो दिव्य सिद्धियाँ हैं, वे बिना यत्न के ही उत्पन्न होती हैं ।
हे आत्मन! ये इन्द्रियों के विषय तुझ को ही ठगने के लिये प्रवृत्त हुये हैं, ऐसा मैं मानता हूँ । इस कारण चित्त को ऐसा स्थिर कर कि जिस प्रकार उन विषयों से कलंकित न हो ।
ये इन्द्रिय-विषय तो आकुलता को ही बढ़ाने वाले हैं । इनके
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