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हम अनादि काल से लेकर आज तक इन इन्द्रियों की माँगें पूरीं करते आ रहे हैं, पर अभी तक इनकी माँग पूरी नहीं हो पायीं हैं । इनकी माँगों के जाल से निकलने के लिये जीवन में संयम धारण करना अनिवार्य है । संयम ही विषय - कषाय को जीतने का साधन है ।
विषय रोग औषधि महा दव कषाय जलधार । तीर्थंकर जा कौ धरे, सम्यक्चारित्र सार ।।
संयम की बहुत महिमा है । विषय रूपी रोग को शमन करने के लिये तथा कषाय रूपी अग्नि को शान्त करने के लिये जलधार के समान यह संयम ही है । जीव के असली शत्रु ये विषय - कषाय ही हैं । विषय - कषायों को जीतने वाला ही सच्चा विजेता है ।
एक राजा था । उसने बहुत से राजाओं को जीत लिया था, इसलिये अपना नाम सर्वजीत रख लिया । उसे सारी दुनिया सर्वजीत कहकर बुलाती परन्तु उसकी माँ उसे सर्वजीत नहीं कहती। एक दिन वह अपनी माँ से बोला कि माँ पूरी दुनिया तो मुझे सर्वजीत कहती है परन्तु तूं मुझे सर्वजीत क्यों नहीं कहती। तब माँ ने कहा कि तू अभी सर्वजीत हुआ ही कहाँ हैं जो मैं तुझे सर्वजीत कहूँ । तब वह बोला - बताओ ऐसा कौन है जो मेरे अधीन न हो ? माँ ने कहा तेरे शत्रु तो तेरे सामने ही विचरण कर रहे हैं। इन्हें तूने कहाँ जीता। जिस दिन तू इन इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लेगा, मैं तुझे सर्वजीत ही नहीं कहूँगी अपितु तेरे चरणों में भी गिर जाऊँगी । इस जीव के असली शत्रु तो ये पंचेन्द्रियों के विषय - भोग तथा कषायें हैं, जिनके कारण यह प्राणी संसार में भटक रहा है। इन्हें वश में करके ही कल्याण किया जा सकता है। विषय-वासनाओं को जीतकर संयम धारण करने वाले मुनिराज ही मोक्ष के अनन्त सुख को प्राप्त करते हैं ।
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