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हाथी कितना बलवान प्राणी है, किन्तु स्पर्शन इन्द्रिय के वशीभूत हाकर मनुष्य के जाल में फँस जाता है।
हाथी पकड़ने वाल मनुष्य हाथियां के जंगल में एक बहुत बड़ा गड्ढा खादत हैं | उसको बहुत पतली लकड़ियों से पाटकर उस पर हरी-हरी घास फैला देते हैं और उसक ऊपर कागज की एक सुन्दर हथिनी बनाकर खड़ी कर देते हैं | हाथी उस हथनी को सच्ची हथनी समझकर उस गड्ढे की ओर झपटता है, जिससे पतली लकड़ियाँ टूट जाती है और हाथी उस गड्ढे में गिर जाता है | वह, वहाँ से निकल नहीं पाता और मनुष्यों द्वारा पकड़ लिया जाता है।
इसी तरह स्पर्शन इन्द्रिय के वश होकर मनुष्य भी आत्म गौरव, धन, कीर्ति, बल, पराक्रम नष्ट भ्रष्ट करके सर्वस्व गँवा देते हैं। देखो, जो त्रिखण्ड के अधिपति थे, सम्पूर्ण शत्रु सेना को पराजित करने में समर्थ थे, ऐसे पराक्रमी कृष्ण भी रुकमणी के चित्र मात्र का दखकर उस पर आसक्त हो गये और उसकी प्राप्ति क लिय हरण जैसा तुच्छ कार्य किया अर्थात् रुकमणी का हरण करके ले आये तथा उसकी प्राप्ति में विघ्न डालने वाले राजा शिशुपाल के साथ युद्ध करके सैकड़ों जीवों को संहार किया।
रसना इन्द्रिय की लोलुपता में फँसकर अगाध जल में विचरण करन वाली मछली अपने प्राण दे बैठती है | __मछलियाँ पकड़ने वाले, लोहे के कांटे की नोक पर आटा या कोई खाने का अन्य पदार्थ लगाकर पानी में डाल देते हैं। मछली जैसे ही उसे खाने के लिये अपना मुख फाड़ती है कि तत्काल वह लोहे का कांटा उसके गले में फँस जाता है और मछली मरकर पकड़ में आ जाती है।
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