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सामान बिखरा पड़ा था। कई जगह गड्ढे खुदे थे। पर विचित्र संयोग, उनका धन सुरक्षित था। जहाँ धन था, वहाँ खोदा ही नहीं गया था।
यही तो अन्तर है ज्ञानी और अज्ञानी में। ज्ञानी जड़ की नहीं, चेतन की कीमत करता है | तृष्णा के गड्ढे का केवल संतोषरूपी धन से ही भरा जा सकता है | तीन प्रकार क गड्ढे होते हैं, एक तो पेट का गड्ढा होता है, दूसरा तृष्णा का गड्ढा हाता है और तीसरा जमीन का गड्ढा हाता है | इस जमीन के गड्ढे को आप भर सकते हो, पेट के गड्ढे को भी आप भर सकते हो, पर यह जो तृष्णारूपी गडढा है वह कभी नहीं भर पाता। तष्णारूपी गडढे में सारे संसार की जायदाद आ जाय फिर भी तृष्णा समाप्त नहीं होती है। आज आपके पास एक हजार रुपय हैं, तो कल आपको एक लाख रुपये की आकांक्षा हो जाती है।
संसार में बहुत पैसेवाले हैं, लेकिन कभी भी उन्होंने ऐसा विचार नहीं किया कि आज हमको पैसा कमाना बन्द करना है | टाटा बिड़ला जैसे आदमी, जिनको खुद अपनी सम्पत्ति के बारे में पता नहीं कि उनके पास कितनी जायदाद है, फिर भी उन्होंने अपना व्यापार बंद नहीं किया और लगातार पैसे कमाने के प्रयास में व्यस्त रहते हैं | यह तृष्णा का गड्ढा कभी भर ही नहीं सकता ।
लोभ भी कई प्रकार का होता है-जैसे शरीर का लाभ, वासना का लोभ, धन का लाभ, मकान का लोभ आदि | लोभ चाह किसी भी प्रकार का क्यों न हो, वह पतन का ही कारण होता है | साहित्य का एक प्रसिद्ध दृष्टांत है - गोस्वामी तुलसीदास अपने जीवन के आरम्भिक समय में महान्
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