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कि वह व्यक्ति अपने बटे के सिर में बाम-मल रहा है, बेटा बीमार है | उसन पूछा-आपक बटे का क्या हो गया है? बाला-तीन दिन से बुखार है। मैं इसकी सेवा कर रहा हूँ | पूछा-इसकी माँ कहाँ है? उसने कहा-माँ तो है, पर उसका दिमाग खराब है। वह कुछ कर नहीं सकती। उसका काम भी मैं ही करता हूँ | वह भीतर कमरे में है। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, यह आदमी इतने कष्ट में है, फिर भी प्रसन्न कैसे रहता है | उस व्यक्ति के लिये वह चाय बनाने गया। बहुत मना करने पर भी जब वह चाय बनाने लगा तो उसने पूछा क्या खाना भी आप खुद बनात हैं? कहा-हाँ, पत्नी खाना नहीं बना सकती। यह छोटा लड़का है, पढ़ने जाता है। इसका बड़ा भाई आवारा है | बुरी संगति में पड़ गया है। अभी कहीं घूम रहा होगा। थोड़ी दर बाद आकर खाना खा लेगा।
उस व्यक्ति को लगा कि इस व्यक्ति के जीवन में बहुत कुछ है। उसने पूछा आप यह सब कैसे कर लेते हैं? आपका जीवन तो बड़ा दुःखमय है। उस व्यक्ति ने कहा मैं-कहीं से भी दुःखी नहीं हूँ | मैं परमात्मा का धन्यवाद देता हूँ, कि मुझे कम-से-कम इस लायक तो बनाया कि मैं अपना सारा काम अपने हाथ से कर लेता हूँ | मैं सदा सकारात्मक सोच रखता हूँ | मेरी पत्नी पागल जरूर है, पर वह चिल्लाती ता नहीं है | बड़ा बेटा आवारा है, पर किसी की हत्या आदि तो नहीं करता। छोटा बेटा पढ़-लिखकर कुछ बन जायेगा। मैं परमात्मा को इस बात के लिये धन्यवाद देता हूँ कि भल मुझ हजार दुःख दिये, पर एक सुख तो मिला है | मैं हजार दुःख की तरफ नहीं देखता । एक सुख की तरफ देखता हूँ और सदैव परमात्मा को याद करता हूँ | मेर सुखी जीवन का एक ही मंत्र है, हर हाल में संतुष्ट रहना और प्रसन्न होकर जीना |
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