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कमी बनी ही रहती है ।
अभाव का सिलसिला ही कुछ ऐसा होता है कि एक अभाव को पूरा करते हैं, तब तक दूसरी वस्तु का अभाव हमारे सामने आकर उपस्थित हो जाता है । उस अभाव को पूरा करने के लिये हम प्रयत्न करते हैं, तब तक उसके स्थान पर तीसरी इच्छा हमारे मन में जगती है और उसके बाद चौथी, चौथी के बाद पाँचवीं । एक अन्तहीन श्रृंखला चालू हो जाती है, जो हम कभी पूरी नहीं कर पाते । अभावों को पूरा करते-करते हमारे जीवन का अभाव हो जाता है, पर अभावों का अन्त नहीं हो पाता ।
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हम दूसरों से बड़ा बनने की कोशिश में अपने मानव जीवन को गँवा रहे हैं । केवल ऊपरी दिखावे और फालतू शान के नाम पर हमने बहुत से कृत्रिम साधनों को अपनाया है, और जब हम उन्हें पूरा करने की कोशिश में लगते हैं, तो हमारे जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है । ऐसे लोग न तो अपनी हैसियत देखते हैं और न ही परिस्थिति । केवल अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं ।
पत्नी ने रूठकर पति से कहा-आप कुछ करो, मुझसे अब और कुछ सहन नहीं होता ।
पति ने कहा- क्या करूँ? क्या सहन नहीं होता? कुछ तो बताओ ?
पत्नी बोली हमारे सामने रहने वाली सहेली पाँच सौ रुपये किराया वाले मकान में रहती है और हमारे मकान का किराया केवल तीन सौ रुपया है। आपको जो करना है सा कीजिए, किन्तु मुझे मरी परेशानी से मुक्त कीजिये । जब मेरी सहेली मुझसे मिलने आती है, तो मैं उससे नजरं भी नहीं मिला पाती ।
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