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स्वर्णकार दो धूर्त थे, दानों क मन पाप |
स्पष्ट हुई जब धूर्तता, दानां करें विलाप || दो सुनार थे । दानों बड़े धूर्त और कपटी थ। दोनों के मन में पाप था । एक की लड़की थी और एक का लड़का था। लड़की लंगड़ी थी और लड़के की एक आँख नहीं थी। एक दिन बाजार में दोनों का मिलन हआ। लड़की वाले ने लडके वाले सनार से कहा-मैंने सुना है, आपका सुपुत्र सुशील कुमार बड़ा हाशियार है | हर क्षेत्र में निपुण है | मैं चाहता हूँ आपके लड़के से मेरी लड़की सुरेश कुमारी का संबंध हा जाय तो अच्छा है। उसने कहा-सबंध तो करना ही है | क्या आपने सुशील को देखा है? वह बोला-देखना क्या है? मुझे तो आप पर विश्वास है, नगर में आपकी अच्छी इज्जत है, अच्छा व्यापार चलता है, अच्छा आपका स्वभाव है | उसको देखकर क्या करूँगा | मैं तो साक्षात आपको देख ही रहा हूँ | यदि आप मरी लड़की सुरेश कुमारी को देखना चाहते हैं, ता घर पधारिय | उसने कहा मुझ भी आप पर पूर्ण विश्वास है, लड़की को क्या दखू | आपकी बोलचाल तथा रहन-सहन से यह पता लगता है कि आपका खानदान बहुत अच्छा है। अच्छे घर की लड़की भी अच्छी होती है। मुझे तो पूर्ण विश्वास है, जैसा आप चाहें वैसा करें।
दोनों को भय था कि कहीं पाप का घड़ा फूट न जाये, एक दूसरे की कमी का पता न लग जाय | दोनों के दिल में मायाचारी थी, ऊपर से बड़े मीठ बोलने वाले थे। संबंध पक्का हो गया। दोनों के घर विवाह की तैयारियाँ हाने लगीं। सुशील कुमार की माँ ने साचा बस, अब तो मेरे घर में बहू आये गी | घर का सारा काम वह संभाल लेगी। मैं बैठी-बैठी आराम करूँगी।
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