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ने कहा था- जाओ ले जाते हो तो घोड़ा ले जाओ, पर यह बात किसी से कहना मत कि मैं छल करके घोड़ा लाया हूँ । नहीं तो लोगों का ईमानदारी पर से, सरलता पर से विश्वास उठ जायेगा ।
जो व्यक्ति जितना सरल होगा, वही धर्म के आत्मा के आनन्द को उपलब्ध कर पायेगा । हमें अपने जीवन को सरल व पवित्र बनाने का प्रयास करना चाहिये । मन में वही सोचना, जो कहने में शर्म न आवे और वही कहें, जो करने में शर्म न आवे। तभी हम आर्जव धर्म को प्राप्त कर सकते हैं ।
जो व्यक्ति जितना सरल होता है, उसका जीवन उतना ही पवित्र व निराकुल रहता है। इसके विपरीत मायाचारी व्यक्ति सदा सशंक बना रहता है, उसे मायाचार के प्रकट हो जाने का भय सदा बना रहता है। वह जानता है कपट खुल जाने पर उसकी बहुत बुरी हालत होगी, वह महान कष्ट में पड़ जायेगा । बलवानों के साथ किया गया कपट प्रकट हो जाने पर बहुत खतरनाक साबित होता है । खतरा तो कपट खुलने पर होता है, पर खतरे की आशंका से कपटी सदा ही भयाक्रान्त बना रहता है । शंकित और भयाक्रान्त व्यक्ति कभी भी निराकुल नहीं हो सकता। इसके विपरीत सरल व्यक्ति सदा शान्त और निर्भय रहता है ।
यह मायाचार जिस किसी के अंदर आ जाता है, वहाँ आर्जव धर्म नहीं हो सकता, वहाँ सरलता नहीं हो सकती । जिस प्रकार बिच्छू का T डंक सारे शरीर में जलन पैदा कर देता है, उसी प्रकार यह मायाचारी व्यक्ति के समस्त गुणों को नष्ट कर देती है । जिस प्रकार छोटी-सी चिनगारी सारे घर को जलाकर राख कर देती है, उसी प्रकार माया कषाय का अल्पांश भी व्रत, संयम, तप आदि द्वारा उपार्जित पुण्य को
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