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एक बहुत विख्यात चोर था। वह ट्रेन में चोरी करता था। एक बार वह ट्रेन में बैठकर दिल्ली से मुम्बई जा रहा था। एक चोरनी आई और उसके सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई। चोर ने देखा कि यह महिला बहुत से गहने पहने है, आज रात में मैं इन्हें ही चुराऊँगा | चारनी उसके हाव-भाव को देखकर समझ गई कि यह चोर है | थाड़ी देर बाद चार बाथरूम गया। इतने में चारनी ने अपने सारे गहने उतारकर एक थैल में रख कर चोर के सामान के बीच में रख दिये | चोर ने आकर दखा कि इसन अपन सार गहन उतार कर रख लिये हैं। जब चोरनी बाथरूम गई, तो चोर न उसका पूरा सामान देख लिया, पर उसे वे गहने नहीं मिल | सुबह जब चोर फिर से बाथरूम गया, तब चोरनी से वह गहनों का थैला निकालकर पुनः सारे गहने पहन लिये ।
वे दोनों मुम्बई स्टेशन पर एक साथ उतरे | चोर ने उस महिला से पूछा-तुम कौन हो? रात में तुम्हारे गहने कहाँ चले गये थे? वह बाली-मैं चारनी हूँ | मैं समझ गई थी कि तुम चोर हो, अतः मैंने अपने सभी गहने उतार कर एक थैले में रखकर तुम्हारे सामान के बीच में ही रख दिये थे और सुबह उठाकर पहन लिये | चोर बोला-मैं विख्यात चोर हूँ, पर आप तो हमस भी बड़ी चारनी निकलीं। क्या आप मुझसे शादी करना चाहती हो? चोरनी बोलीमुझे आपसे अच्छा सुन्दर हट्टा-कट्टा पति कहाँ मिलेगा? दोनों ने शादी कर ली। कुछ दिन बाद चोरनी डिलेवरी के लिये हास्पिटल में भर्ती हो गई। डाक्टरनी उसे डिलेवरी रूम में ले गई। डिलेवरी से पहले डाक्टरनी ने अपनी एक लाख रुपये की हीरे वाली अंगूठी उतारकर वहीं रख दी । बच्चा हा गया । डाक्टरनी ने देखा कि मेरी अंगूठी यहाँ नहीं है, तो वह चोरनी से बोली-इस कमरे में मैं, तुम
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