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एक किसान था। उसने स्वप्न दखा कि मैं मरकर स्वर्ग पहुँच गया हूँ। आदमी कैसे भी काम करे पर सपने तो स्वर्ग के ही दखता है | स्वप्न में स्वर्ग पहुँचा। वहाँ जाकर वह देखता है कि पूरे स्वर्ग को सजाया गया है | उसने स्वर्ग के किनारे पर बैठे एक व्यक्ति से पूछा कि आज यहाँ क्या हो रहा है? वह बोला-भाई! आज मृत्युलोक के एक सेठ ने स्वर्ग में जन्म लिया है, उसके जन्मोत्सव की यह खुशी मनाई जा रही है। उसने सोचा कि स्वर्ग में जन्म लेने वाल के स्वागत की यही परंपरा होगी और वह एक किनारे पर बैठ गया, इस आशा में कि थोड़ी देर बाद मेरे लिये भी ऐसा ही जलसा किया जायेगा, ऐसे ही ठाट-बाट वाले गाजे-बाजे आयेंगे और लाग मुझे ले जायेंगे | काफी देर प्रतीक्षा करने के बाद सिर्फ दो द्वारपाल आये और उन्होंने उससे कहा कि आपका स्वर्ग में आमंत्रण है, प्रवेश कीजिये | उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह ता इस आशा में था कि हजार दो हजार की भीड़ आयेगी, पर वहाँ सिर्फ दो । वह बहुत संकोच में था | उसके संकोच को देखकर द्वारपालों ने कहा – 'आप चलिये, हम आपको ही लेने आये हैं। मुझ लने आय हो? हद हो गई बईमानी की। मैंने तो सना था कि सिर्फ मृत्युलोक में पक्षपात होता है, पर तुम्हारे स्वर्ग में भी पक्षपात हाने लगा। द्वारपालों ने पूछाक्यों क्या बात हो गई? किसान ने कहा – अभी-अभी मैंने देखा कि एक सेठ ने स्वर्ग में जन्म लिया तो उसके लिये इतना ज्यादा जलसा किया गया, जन्मात्सव मनाया गया, और मैं सीधा-सादा किसान जिसने आज तक कोई अन्याय-अनीति नहीं की, कोई पाप का कार्य नहीं किया, उसके लिये सिर्फ दो जन, वह भी बिना गाजे-बाजे के | यह पक्षपात नहीं ता और क्या है? उन्होंने समझाया कि भाई, पक्षपात की बीमारी तो मनुष्यों में है, स्वर्ग में नहीं, हमारे यहाँ कोई
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