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परिणामों से जो खोटे कर्मों का आस्रव करता है, उसका फल व्यर्थ ही भोगना पड़ता है।
श्री समता सागर जी महाराज ने लिखा है - निष्कपट व्यवहार के समान इस विश्व में कोई भी प्रशंसनीय नहीं है और मायाचार के समान निन्दनीय नहीं है । कपटी का व्रत पालन, दान, पूजा, तीर्थाटन आदि करना निष्फल है। जो दूसरों को मायाजाल में फँसाने का प्रयत्न करता है, वह स्वयं उसमें फँस जाता है | जो दूसरों को गड्ढा खोदता है, वह स्वयं उस गड्ढे में गिरता है। दूसरों को धोखा दने के लिये यदि हमने किसी व्यूह की रचना की है, तो निश्चित ही हम मकड़ी की तरह स्वयं उसमें फँसकर रह जायेंगे | और भोले क तो भगवान हुआ करते हैं? जो सरल हाता है, उसके जीवन में भले ही कोई न हो, पर भगवान उसका साथ हमेशा देता है |
एक गाँव क ठाकुर साहब का दूसरे गाँव के एक व्यापारी से लेन-देन रहा करता था। एक दिन व्यापारी के मन में आया उधारी बहुत हो गई है, ठाकुर साहब के यहाँ से पैसा ल आयं ता अच्छा रहगा | और व्यापारी अपने गाँव से पैदल चलकर ठाकुर साहब के गाँव आया। रात में सारा हिसाब-किताब किया। लाखों रुपये की वसूली हुई। रात ज्यादा हो जाने से व्यापारी ने सोचा सुबह-सुबह मुँह अंधेरे में निकल जायेंगे | अभी रात ज्यादा हो गई है अतः यहीं आराम कर लेता हूँ | वह सारे पैस रखकर क सा गया । ठाकुर साहब के मन में पाप आया और उसने सोचा कि व्यापारी सुबह-सुबह मुँह अंधेरे अपने गाँव जायेगा क्यों न इसे रास्ते में ही खत्म करवा दिया जाये | ठाकुर साहब ने अपने नौकर के लिये समझा दिया कि देख मुँह अंधेरे य व्यापारी सारे पैसे लेकर जायेगा, रास्त में छिपकर बैठना है | जैसे ही वह रास्ते से निकले सीधा निशाना साध देना और
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