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एक नगर में दो पंडित रहत थे | एक का नाम नाम्बियार और दूसरे का कुलशेखर था। नाम्बियार कुछ कम बुद्धिमान था अपेक्षा कुलशेखर क, इसलिये कुलशेखर की सभा में अधिक श्राता पहुँचते थे। इस कारण नाम्बियार ईर्ष्या की आग में जलता रहता था और कहता कि दुनिया पागल है, इसलिये पागल की बात सुनती है। एक दिन वह असमय घर पहुँच गया तो वहाँ पर उसकी पत्नी नहीं थी। पड़ोसी से पूछने पर पता चला कि वह तो कुलशेखर की सभा में गई है । उसको सुनते ही बहुत गुस्सा आया और गुस्से में वहीं सभा में पहुँच गया तथा भरी सभा में अपनी पत्नी पर बरस पड़ा व सभा को भंग कर दिया। बाद में नाम्बियार को बड़ा पछतावा हुआ कि मैंने ईर्ष्यावश मानकषाय के कारण सभा भंग की और उसका अपमान किया। कुलशेखर मुझसे ज्यादा विद्वान् तो है ही। रात्रि में वह कुलशेखर से माफी माँगने उसके घर चला गया | उधर कुलशेखर के मन में भी बहुत दुःख हो रहा था कि मेरे कारण नाम्बियार को दुःख पहुँचा। तभी नाम्बियार कुलशखर के घर पहुँच जाता है और बड़ी विनम्रता से अपनी गलती की माफी माँग लेता है। ___ मानकषाय के कारण व्यक्ति को अच्छे-बुरे की पहचान नहीं होती और जो अच्छा-बुरा नहीं सोच सकता, वह न ता अपना आत्मकल्याण कर सकता है और न ही वह दूसरों को कोई फायदा पहुँचा सकता है।
बड़ा हुआ ता क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर | पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर || भगवान महावीर स्वामी ने अपनी देशना में कहा-हे भव्य प्राणियो! संसार के कष्टों स यदि मुक्ति चाहते हो तो मुक्ति के सोपान विनय