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की कराह को सुनकर उसके अंदर करुणा उमड़ आयी । सारा भय त्यागकर वह शेर के सामने पहुँच गया। शेर ने अपना पंजा उसकी ओर कर दिया। उसके पंजे में एक तीखा काँटा चुभा हुआ था । उससे शेर को बहुत पीड़ा हो रही थी । शेर इसीलिये कराह रहा था । उसने उसकी स्थिति देखी तो समझ गया कि शेर मुझसे सहयोग चाहता है। उसने सबकुछ भूलकर उसके उस काँटे को बाहर निकाल दिया । जैसे ही काँटा बाहर निकाला, शेर की पीड़ा कम हो गई । उसने उसकी तरफ कृतज्ञता भरी नजरों से देखा और चुपचाप अपने रास्ते चला गया ।
कहते हैं कुछ दिन बाद वह डायजनिस पकड़ा गया और उसे सजा में यह कहा गया कि इसे भूखे शेर के पास छोड़ दिया जाये, भूखा शेर इसे खा लेगा । उसे प्राणदण्ड दिया गया। बीच चौराहे पर उसे सजा देने के लिये एक पिंजरे में तीन दिन के भूखे शेर को लाया गया और उसे पिंजरे में धकेल दिया गया। पहले तो शेर जोर से दहाड़ा, पर जैसे ही उसके पास आया तो बिलकुल शान्त हो गया । बहुत प्रयत्न किया गया कि किसी तरह से शेर उसका भक्षण कर ले, पर शेर ने उसे सूँघा, उसकी परिक्रमा लगायी और अपने स्थान पर आकर बैठ गया। भूखे रहने के बाद भी शेर ने उसका भक्षण नहीं किया, क्योंकि शेर को मालूम पड़ गया था, उसने पहचान लिया था कि यह वही डायजनिस है जिसने मेरे पैर से काँटा निकाला था। पशुओं के अंदर भी कृतज्ञता होती है । वे भी कृतघ्न नहीं होते ।
चोर, लुटेरे भी यदि उनके ऊपर कोई उपकार करता है तो जीवन - पर्यन्त उसके कृतज्ञ रहते हैं। एक बार एक डाक्टर साहब अपने परिवार के साथ कहीं जा रहे थे। कार में उनके बच्चे और
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