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एक देवी की आराधना की । आराधना से देवी प्रसन्न हुई और प्रकट होकर बोली- तुम दोनों की आराधना से मैं प्रसन्न हूँ। माँगो, क्या चाहते हो ? पर एक शर्त है - तुम दोनों में से जो पहले माँगेगा दूसरे को मैं उससे दुगना दूँगी | इतना सुनना था कि लोभी ने सोचा यह तो बड़ा गड़बड़ हो जायेगा। मैं अगर पहले माँगता हूँ तो सामनेवाले को दुगना मिल जावेगा, तो मुझे सहन नहीं होगा । वह एकदम चुप हो गया कि माँगने दो इसे पहले। और मत्सरी ने सोचा कि यह कैसे होगा, मैं पहले मागूँगा तो वह आगे निकल जायेगा। यह मुझसे सहन नहीं होगा । थोड़ी देर प्रतीक्षा के बाद भी जब दोनों ने कुछ नहीं माँगा तो देवी झल्लाती हुई बोली- तुम लोगों को माँगना हो तो माँगो, नहीं तो मैं चली। तब मत्सरी सोचता है- अच्छा, यह लाभी लोभ के कारण पहले नहीं माँग रहा है। ठहरो, इसको लोभ का मजा चखाता हूँ। और उसने देवी से कहा- क्या तुम ठीक कहतीं हो कि जो पहले माँगेगा दूसरे को उससे दुगना दोगी? देवी बोली- हाँ, मैं बिलकुल दुगना दूँगी । तो उसने कहा- ठीक है, देवी! यदि तुझे दूसरे को मुझसे दुगना देना है तो ऐसा कर दे कि मेरी एक आँख फोड़ दे और मेरे घर के बाहर एक कुआँ खोद दे | इतना सुनना था कि लोभी आदमी देवी के चरणों में गिर पड़ा, बोला-माता! ऐसा मत करना, क्योंकि इसकी एक आँख फूटेगी तो मेरी दोनों ही फूट जाएँगी और घर के बाहर यदि दो कुँए खुद जायेंग तो मेरा क्या होगा? इसलिये, मेरे साथ ऐसा कभी नहीं करना । लेकिन देवी ने कहा- तुम्हें तुम्हारी करनी का फल मिल गया, अब मैं कुछ नहीं कर सकती । और कहते हैं कि उसने तथास्तु कह दिया । इसकी एक आँख फूटी, एक कुआँ खुदा और उसकी दोनों आँखें फूट गयीं, दो कुँए खुद गये ।
ये हमारी कषाय का परिणाम है। पता नहीं इस कहानी में
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