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साधु जी को महल की छत पर ले गय और बोले-बाबाजी! दखिये समुद्र में ये जो जहाज हैं, व सब मेरे हैं। और उन जहाजों में जानते हैं क्या है? सबमें हीरे-जवाहरात, बेशकीमती | बाबाजी ने गौर से देखा | राजा खुश | राजा फिर बोले-देखा, ये इतने सार जहाज हैं, सब अपने हैं | बाबाजी ने बहुत गौर से देखा ।
राजा ने पूछा-क्या देख रहे हैं आप? बाबाजी बोले - मुझ तो दो ही जहाज दिखाई दे रहे हैं। राजा ने चौंकते हुये कहा-क्या मतलब? क्या आपकी आँखें खराब हो गई हैं? इलाज करवाऊँ उनका?
बाबाजी बोले-मतलब य कि जहाज दो ही प्रकार के हैं - एक नेम अर्थात् नाम का और दूसरा फेम अर्थात् प्रसिद्धि का | मेरा नाम हो, मरी प्रसिद्धि हो, बस ये सब इसी के लिये तो हैं। ___चाहे कितने ही जहाज हों, चाहे कितना ही बड़ा महल हा, ये इन्हीं दो चीजों के लिये तो हैं कि मुझे ज्यादा-से-ज्यादा लोग जाने
और ज्यादा-से-ज्यादा लाग मानें। बस ये दो ही जहाज हैं जो चौबीस घंटे अपन जीवन में यहाँ से वहाँ घूमते रहते हैं। इस चीज को अपने भीतर झाँक कर देखें कि कहीं ऐसा जहाज हमारे अपने भीतर तो नहीं है। अगर है, तो उसे निकालने का प्रयत्न करें।
हमें अपने जीवन में इस अहंकार को धीर-धीर घटाना है और विनय को धीरे-धीरे लाना है |
विनय आती कैसे है? बहुत आसान तरीका है। पहला उपाय है हम धर्म और धर्मात्मा का सम्मान और प्रशंसा करना शुरू कर दें |
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