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पर लगाते हुये जिबिस्को से कहा- मैं तुम्हें चैलेंज करता हूँ, 7 दिन बाद फिर कुश्ती होगी । उसने कहा- मुझे मंजूर है। दोनों चले गये ।
गामा ने अपने उस्ताद से कहा- ये कुश्ती मुझे हर हालत में जीतनी है । उस्ताद ने भी उसे अच्छी तालीम दी । 7 दिन बाद वह मुकाबला उसी स्थान पर रखा गया। लेकिन 7 दिन बाद जिबिस्को कुश्ती लड़ने नहीं आया । गामा विजेता घोषित हुआ। बाद में सन् 1928 में पटियाला में फिर दोनों की कुश्ती हुई। जिसमें गामा ने 42 सेकण्ड में जिबिस्को को हरा दिया । फिर गामा के जितने भी मुकाबले हुये, वह सभी में विजयी रहा । वह ओलम्पिक में भारत की टीम की ओर से कुश्ती लड़ा था और अन्त में विश्वविजेता बना । बाद में बंटवारे के समय वह पाकिस्तान चला गया ।
कहते हैं बाद में जब गामा पहलवान बीमार पड़ गया तो उसकी आँखों के आसपास मक्खियाँ बैठ जाती थीं और उसका हाथ बाजू मं पड़ा रहता था। हाथ उठाकर मक्खियाँ भगाने की ताकत भी उस गामा पहलवान में नहीं रह गई थी । जब गामा पहलवान जैसों की यह हालत हो सकती है तो बाकी लोग लगते कहाँ हैं? बल का मद विवेकीजनों को कैसे आ सकता है ?
राजा दशरथ के वैराग्य की घटना बड़ी विचित्र है । एक बार एक वृद्ध राजा दशरथ के पास आया और बोला - महाराज ! जवानी में मैं दौड़ते हुये घोड़े को रोक देता था । लोग हाथी की सवारी सीखने मेरे पास आते थे। पर आज वृद्धावस्था में मेरा वह सारा-का-सारा बल पता नहीं कहाँ चला गया? मैं कई जगह बैठ - बैठकर बड़ी मुश्किल से यहाँ तक आया हूँ। उसकी बात सुनकर राजा दशरथ विचार करने लगे अब मेरे भी तो बाल पक गये हैं । और उसी समय
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