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आवाज दी-मैं आऊँ? सेठ जी लक्ष्मी से कहते हैं-आओ तो इस शर्त पर आना कि मैं लौटकर नहीं जाऊँगी। लक्ष्मी बोली-मैं एसा वायदा तो नहीं कर सकती, पर इतना अवश्य कहती हूँ कि जब जाऊँगी तब कहकर जाऊँगी। इस बीच राजा कहीं बाहर गया था। रानी ने इस अर्जीनवीस को बुलाकर राजा को बुलाने के लिये इस ढंग से पत्र लिखने को कहा जिससे राजा को बुरा भी ना लगे और राजा पत्र पढ़कर तुरन्त घर वापिस आ जायें।
अर्जीनवीस ने बड़ी कुशलता के साथ कलापूर्ण पत्र लिखा, राजा पत्र पढ़कर वापिस आ गया। घर आकर रानी से बोला-अभी काम तो बहुत बाकी पड़ा था, मैं अभी नहीं आ सकता था पर, प्रिये ! तुम्हारे पत्र ने आन को विवश कर दिया। किस कुशल व्यक्ति से यह पत्र लिखवाया था? रानी ने अर्जीनवीस का नाम बता दिया। राजा ने खुश होकर उसे दीवान बना दिया। अब क्या था, अर्जीनवीस के दिन फिर गये। दिन-पर-दिन लक्ष्मी आने लगी और वह मालामाल हो गया। एक दिन उसने सोचा कि कहीं लक्ष्मी चली न जाये, इसलिये एसा प्रबन्ध करना चाहिये कि कभी वह जा न सके । ऐसा सोचकर उसने एक बड़ा पक्का मकान बनवाया, तहखानों में बड़े-बड़े भण्डार धन रखने के लिय बनवाये | पीतल, ताँबा क हण्डों में धन भर-भरकर और मुखों को अच्छी तरह बन्द करके तहखाने में बन्द करवा दिया और सोचने लगा कि देखें, अब लक्ष्मी कैसे जाती है? ___ एक दिन की बात है, राजा उसे अपने साथ शिकार खेलने ले गया। राजा भागते-भागते थक गया और वहीं जंगल में विश्राम करने क लिये लेट गया । दीवान ने भक्तिवश राजा का सिर अपनी जाँघ पर रख लिया। लेटते ही राजा को नींद आ गई। इतने में लक्ष्मी आई और दीवान से बोली-लो सावधान, मैं अब जाती हूँ |
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