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भी बैठे रहे । अन्त में जब द्रोपदी का अहंकार टूटा और नारायण को पुकारा, तभी तो नारायण मदद के लिये पहुँचे । इसी प्रकार भगवान तभी मिलते हैं, जब अहंकार समाप्त हो जाता है ।
जब दिन बदलते हैं, तो एक दिन में ही व्यक्ति आसमान में पहुँच जाता है। जब बिगड़ते हैं, तब व्यक्ति आकाश से जमीन पर आ जाता है । कोई नहीं जानता था कि राम को राजा दशरथ से जो राजसिंहासन की गद्दी मिली है, वह दूसरे दिन ही छिन जायेगी और अपनी माता - समान केकई के द्वारा महलों से उल्टा 14 वर्ष का वनवास मिलेगा | यही तो कर्मों की विचित्रता है। धन और सत्ता का अहंकार एक दिन हँसाता है, तो वह एक दिन रुलायेगा, यह गारन्टी है |
आचार्यों ने कहा है
'मानेन सर्व जन निन्दितः वेश रूपः '
अहंकार से सभी मनुष्यों के द्वारा निन्दा का ही पात्र बनना होता है । यह अहंकार कागज की नाव के सदृश है जो एक दिन अवश्य ही डूबगी । सारी महत्त्वाकांक्षाएं समाप्त हो जायेंगी । अभिमानी व्यक्ति के तो लोग बिना कारण बैरी बन जाते हैं । उसका बुरा चाहने लगते हैं । यह अहंकार, यह ईगो, यह मान, यह 'मैं' महाभयानक राक्षस है । यह प्रत्येक व्यक्ति के पीछे लगा हुआ है ।
रावण, कंस, दुर्योधन का विनाश अहंकार के कारण ही तो हुआ | जब तक जीवन में अहंकार रूपी अधर्म बैठा है, तब तक धर्म प्रवेश नहीं कर सकता। इसलिये जीवन के उत्थान के लिये अहंकार को छोड़ना अनिवार्य है । जितनी भी महान आत्माएँ संसार में उत्थान को प्राप्त हुईं हैं, वे सब विनम्र थीं, अहंकार से शून्य थीं । अहंकार के रथ
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