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क्रोध से बचने का पहला उपाय है, जब भी क्रोध आये तो थोड़ा विलम्ब करो। क्रोध में शीघ्रता न करो। आचार्यों का उपदेश है कि शुभ करना है, तो तुरन्त करो और अशुभ करना है ता विलम्ब करो, कल पर छोड़ दो।
दार्शनिक गुरजिएफ क दादा जी मरने लग तो उन्होंने गुरजिएफ को वसीयत में एक सीख दी-बेट! इतना याद रखना कि अगर कभी किसी पर क्रोध आये तो उससे इतना कहना कि मैं चौबीस घंट बाद आपकी बात का जवाब दूंगा, इतना कहकर चौबीस घंट के लिये उससे विदा ले लेना। फिर चौबीस घंटे में विचार कर लेना क्रोध के कारणों पर क्रोध के औचित्य पर और क्राध क परिणामों पर |
गुरजिएफ ने अपनी जीवनी में लिखा है - इस सूत्र ने, इस सीख ने मेरे जीवन का स्वर्ग बना दिया। मेरे जीवन में खुशियाँ भर दीं, क्योंकि चौबीस घंट बाद जवाब देने जैसा कुछ लगा ही नहीं । जवाब देने जैसा कुछ रहा ही नहीं। ___क्रोध स बचने का दूसरा उपाय है-सकारात्मक सोच, पॉजीटिव थिंकिंग | जब कोई भी घटना हमारे सामने घटित होती है, तो हम उसमें जा भी खराबियाँ है, कमियाँ है, उन पर बहुत ध्यान देत हैं। ऐसी स्थिति में हमारे अंदर क्रोध आये बिना नहीं रहेगा। उसमें जो अच्छाइयाँ हैं, अगर हम उनकी तरफ देखें तो हमारे भीतर सौहार्द आये बिना नहीं रहेगा। कमियाँ देखकर घृणा भी आती है, क्रोध भी आता है और अच्छाइयाँ देखकर सौहार्द और प्रेम आता है | ता क्रोध से बचने के लिये हम किसी भी घटना की बुराइयाँ देखना बंद करें और उसकी अच्छाइयाँ देखना शुरू कर दें। अनादि काल से बुराइयाँ देखने के ही संस्कार हैं, अब मैं
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