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संगीत व वास्तु पुस्तक (PDF) मुफ्त डाउनलोड करें (10 _ देखें www.dwarkadheeshvatu.com इंसान के लिए भगवान का क़ानून/कृपा कवच जिस भवन/बेडरूम में हम रहते हैं उसे वास्तु के अनुसार देखकर पूरे परिवार के जीवन में चल रहे सभी कार्य (घटनाएँ) ईश्वर की कृपा से बताई जा सकती हैं और भवन/बेडरूम को वास्तु के अनुरूप ईश्वर की प्रेरणा से बनाने पर सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाता है। यह ईश्वर का विधान है।
वास्तु सिद्वान्तों पर विचार व समाज में चल रही मान्यताएँ वास्तु का स्वरूप :- भगवान अर्ध-नारीश्वर शिव (जिनके शरीर का दायाँ आधा भाग पुरूष व बायाँ आधा भाग नारी है) के चरण ही वास्तु का स्वरूप हैं। दाएँ चरण का अगला भाग (अँगूठा और उंगलियाँ) पूर्व और पिछला भाग (ऍड़ी) पश्चिम, पुरूषों का स्थान होता है। बाएँ चरण का अगला भाग (अँगूठा और उंगलियाँ) उत्तर और पिछला भाग (ऍड़ी) दक्षिण, महिलाओं का स्थान होता है। भगवान के दाएँ और बाँए चरणों के अँगूठों के नाखूनों से गंगा जी प्रकट हुईं हैं, यह स्थान नार्थ-ईस्ट है।
शास्त्रों व समाज की मान्यता है कि ईश्वर की ईच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। परमात्मा हर प्राणी के अंदर बसते हैं। और सारा ब्रह्माण्ड उनके अंदर है। परमात्मा की कृपा से ही जीव (पेंड़-पौधे, पशु-पक्षी इत्यादि) चेतन होते हैं। वास्तु विद्या भी प्रभू की उसी कृपा के दर्शन कराती है। जो परिवार जिस तरह के कर्म करता है उसे उसी तरह के वास्तु का भवन/स्थान मिलता है। इस विद्या का ज्ञान होने पर भी, वास्तु दोष दिखाई नहीं देते। वास्तु तभी ठीक होगा जब प्रभू की कृपा होगी। हमारे जीवन में सुख का अर्थ आनन्द, दुख का अर्थ तप, यानि परम आध्यात्म, जो जन्म-जन्म तक जीव के साथ रहता है। हम दस दिशाओं व उनके दिग्पालों की पूजा करते हैं, विशेषकर शक्ति स्वरूप माता भगवती से हम दस दिशाओं का रक्षा कवच पाने की प्रार्थना करते हैं। जो परिवार ईश्वर के पूर्ण भक्त हैं, उन परिवारों को विशेष रूप से वास्तु रूपी ईश्वर की कृपा का कवच मिलता है और राजा जनक जैसी स्थिति प्राप्त होती है। दिशाओं का परिचय :
दस दिशाएं 1. उत्तर, 2. पूर्व, 3. दक्षिण, 4. पश्चिम, 5. नार्थ-ईस्ट (ईशान), 6. साउथ-ईस्ट (आग्नेय), 7. साउथ-वेस्ट (नैरूति), 8. नार्थ-वेस्ट (वायव्य), 9. भूमि, 10. आकाश हैं। प्लॉट के फेसिंग का महत्व :
प्लॉट उत्तर/पूर्व/दक्षिण/पश्चिम/नार्थ-ईस्ट/ साउथ-ईस्ट/साउथ-वेस्ट/नार्थ-वेस्ट सभी दिशाओं का शुभ होता है और प्रत्येक दिशा का अपना एक विशेष महत्व है। वास्तु के अनुसार सही तरह से निर्माण करने पर उसके पूर्ण लाभ मिलते हैं। प्रकृति/वास्तु द्वारा निर्धारित नियम :
जिस प्रकार ग्रहों का घूमना, मौसम का बदलना इत्यादि प्रकृति के नियम हैं। इसी प्रकार वास्तु सिद्वान्त भी प्राकृतिक नियम हैं। भूमि/भवन के नार्थ-ईस्ट भाग का सम्बन्ध धन, पूरे परिवार की सुख-शान्ति, पहली/चौथी/आठवीं संतान और घर के कमाने वाले सदस्य से होता है। साउथ-ईस्ट भाग का सम्बन्ध सुख-शान्ति, प्रशासनिक कार्यों, महिलाओं व दूसरी/छठी संतान से होता है। साउथ-वेस्ट भाग का सम्बन्ध घर के मुखिया व पहली/पाँचवी संतान से होता है। नार्थ-वेस्ट भाग का सम्बन्ध सुख-शान्ति, प्रशासनिक कार्यों, महिलाओं व तीसरी/सातवीं संतान से होता है। पूर्व व पश्चिम भाग का सम्बन्ध पुरूषों के स्वास्थय, मान-सम्मान व स्वभाव से होता है। उत्तर और दक्षिण भाग का सम्बन्ध धन, महिलाओं के स्वास्थ्य, मान-सम्मान और स्वभाव से होता है।
पूर्व, पश्चिम, नार्थ-ईस्ट या साउथ-वेस्ट भाग में दोष होने पर, सबसे बुजुर्ग सदस्य जैसे दादा/पिता बीमार रहेंगे उनकी पहली, चौथी और पाँचवी संतान को विवाह व धन की समस्या रहेगी। दादा/पिता की मृत्यु होने पर डेढ़ बर्ष के अंदर-अंदर घर का सबसे बड़ा पुरूष सदस्य बीमार हो जाएगा।
उत्तर, दक्षिण, नार्थ-वेस्ट या साउथ-ईस्ट भाग में दोष होने पर, दादी/माता बीमार रहेंगी, दूसरी, तीसरी, छठी व सातवीं संतान को प्रशासनिक समस्याएँ, धन की कमी, विवाह से परेशानी, आग व चोरी की घटनाएँ, एक्सीडेंट, जेल इत्यादि होंगी। दादी/माता की मृत्यु होने पर डेढ़ बर्ष के अंदर-अंदर घर की सबसे बड़ी महिला बीमार हो जाएगी।