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भामाशाह
विशाल दल के साथ इधर आ रहा है। अब यह स्थान शीघ्र ही त्याज्य है।
प्रतापसिंह-( सखेद ) पर इसके अतिरिक्त अन्य गुप्त स्थान रहा ही कहां ? अतः अब मेवाड़ की सीमा त्याग अन्यत्र वास करना ही श्रेयस्कर है।
एक सामन्त-किन्तु स्वामिन् ! यहाँ से कहां जाना उचित होगा ?
प्रतापसिंह-ईस स्थल को त्याग कर सिंधु नदी के पार चलेंगे और वहीं अज्ञात अवस्था में शेष जीवन व्यतीत करेंगे।
द्वितीय सामन्त-किन्तु महाराणा ! यदि आप इस स्वर्गादपि गरीयसी जन्म भूमि को त्याग चले जायेंगे, तो कौन इस असहायाको बंधन-मुक्त करेगा ? कौन विदेशियों के अत्याचारों से इसकी मर्यादा की रक्षा करेगा ?अतः मेरी प्रार्थना है कि यहीं रह कर आमरण मेवाड़उद्धार का प्रयत्न किया जाये।
प्रतापसिंह–सामन्तवर ! आपकी प्रार्थना अनुचित नहीं, पर धन और सेना के अभाव में मेवाड़ का उद्धार असम्भव है। ऐसी दशा में यहां पड़े रहना मां मेदिनी के ही भार की वृद्धि करना है ।
तृतीय सामन्त-यदि आप मेवाड़-त्याग में ही कल्याण का अनुभव करते हैं, तो यही मार्ग अपनाया जाये। पर इस जन्म-भूमिको त्यागने का विचार करते ही अन्तरात्मा रो उठती है । __प्रतापसिंह-आपसे अधिक पीड़ा मुझे स्वभूमि त्यागने में होती है । पर विवश हूं, प्रतिकूल परिस्थितियों ने सफलताके सभी द्वार बन्द कर दिये हैं। अतः अब जीवन के अन्तिम दिनों में शांति लाभ करने
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