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भामाशाह
मंत्री–किन्तु, यह भी विचारणीय है, कि भामाशाह का उद्देश्य हमें अपमानित करने का नहीं, मातृ-भूमि का उद्धार करने का है । इनकी भावनाएं स्वार्थ की गंध से दूषित नहीं, वरन देशभक्ति की उम्मियों से गंगाजल-सी पवित्र हैं। अतः इन्हें कुछ भेंट करना एक राष्ट्रीय यज्ञ में सहयोग देना कहलायेगा-अपनी हीनता का प्रदर्शन नहीं । ___ मालवेन्द्र-यदि वस्तुतः आपकी यह धारणा है तो मेवाड़-उद्धार के लिये कुछ निधि भेंट स्वरूप दे दी जाये । ( कुछ रुक कर ) कहिये, भेट में कितनी धन राशि शोभास्पद होगी ? ___ मंत्री-मेरे विचार से २५ लक्ष रुपये और २० सहस्र स्वर्ण-मुद्राए पर्याप्त होंगी।
मालवेन्द्र-अब मैं आपके निर्णय में हस्तक्षेप न करूंगा। ( कोषाध्यक्ष से ) आप अभी ही कोषसे इतनी निधि ला कर इन्हें दे दें।
कोषाध्यक्ष - मैं अभी ही निर्दिष्ट भेंट लेकर आता हूं। (गमन )
मालवेन्द्र---अमात्यवर ! भामाशाह को भेंट देकर आप ऐसा प्रस्ताव करें जिससे वे मालवा की सीमा से चले जायें।
(एक स्वर्णथाल में रुपयों और स्वर्ण-मुद्राओं की थैलियाँ लिये कोषाध्यक्ष का आगमन)
मंत्री-( स्वर्णथाल ग्रहण करते हुए) स्वामिन् ! मैं भामाशाह के शिविरों में जा रहा हूं। कार्य-सिद्धि कर शीव्र सेवा में उपस्थित होऊंगा । आप किसी अनिष्ट की शंका न करें । मालवेंद्र-जाइये, मुझे आपकी चातुरी पर पूर्ण विश्वास है।
( मंत्री का गमन)
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