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भामाशाह में अपना सर्वस्व होम करने के लिये तत्पर हो जाओ, मेवाड़ के सिंहासन पर वज्र गिरने में विलम्ब नहीं। छल के दोष से बचने के लिये मैं आज ही सावधान किये जाता हूं। ( शीघ्रता से प्रस्थान )
प्रतापसिंह-(आवेश में ! चला गया! चला गया !! मेरे गृह को अपवित्र करने वाला मानसिंह चला गया !!! भामाशाह ! इस स्थान को खुदवा कर गंगाजल सिंचन कर पवित्र करवाओ। इन समस्त पात्रों को भूमि पर पटक-पटक कर चूर करवा दो। मानसिंह का स्पर्श करने वाले तुम सब स्नान कर यज्ञोपवीत बदल डालो। मैं भी ब्राह्मणों को सवत्सा गायें दान देकर उसका मुख देखने का प्रायश्चित्त करूंगा। ( सामन्तों से ) अब किसी भी क्षण युद्ध का ज्वालामुखी अपना मुख खोल सकता है। अतः युद्ध की रंगभूमि पर अपनी रणकला का अभिनय करने के लिये सज्जित हो जाओ, मेवाड़ के सिंहासन पर दांत गड़ाने वाले भेड़ियों के दांत तोड़ने को कटिबद्ध । बनो। मातृभूमि के चरणों पर प्राणों की पुष्पांजलि अर्पित करने को सन्नद्ध होओ।
सामन्तगण--मेवाड़ गौरव ! हम सब तत्पर हैं, विलम्ब है केवल आपकी आज्ञा का। फिर तो हममें एक एक शत शत यवनों के नाश के लिये पर्याप्त होगा। बप्पा रावल और राणा सांगा हमारा पराक्रम देख स्वर्गमें किलकारियां भरेंगे। आप विश्वास रखें, कि एक भी मेवाड़ी वीर के जीवित रहते मेवाड़ का सिंहासन विदेशियों के स्पर्श . से कलंकित न होगा।
प्रतापसिंह-साधुवाद ! सामन्तो, साधुवाद !! ये उद्गार आप के