________________
( १४ ) वक्रगा अबला वक्रान्मार्गगाः शुभदा रविः । उत्तरायणगो युद्धे ग्रहाणामुत्तरो बली ॥६१॥ दिक्षु ज्ञो गुरुरविकुजशनिसितशशिनो निसर्गास्तु । कुजशनिबुधगुरुसितशशिरविबले क्रमाद्राहुरधिकवलः ॥६२॥ अस्तमिताः शत्रुजिता नीचस्था नीचगामिनो विरुचः । रिपुग्रहगरूक्षह्रस्वा अणवः कार्याक्षमा अचलाः ।।६३॥ करयुक्ता क्रान्ता दृष्टा विद्धा जिता न कार्यकराः । शुभफलदा विपरीताः स्वावस्थाविकलाः सर्वे ॥६४॥ दीप्तः स्वस्थो नीचो मुदितः पीडितः शान्तः खलः शत्तो विकलः"
ग्रह वक्री होने से निर्बल हो जाते हैं । फिर वक्री से मागीं होने पर शुभ फल को देने वाले होते हैं । सूर्य उत्तरायण होने पर अर्थात मकरादि ६ राशि में रहने से बली होता है। ग्रहयुद्ध में उत्तर दिशा में दिखने वाले ग्रह बली होते हैं ।।६।।
पूर्वादि दिशाओं में क्रम से बुध, गुरु, भौम, शुक्र, चन्द्र और शनि बली होते हैं । भौम, शनि, बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्र, सूर्य इन ग्रहों में क्रमिक एक से दूसरा बलवान होता है । राहु सब से अधिक बलवान होता है ॥२॥
यदि कोई ग्रह सूर्यबिम्ब से अस्त हो अथवा शत्र से जीता हुश्रा हो, वा नीच में हो, वा नीचगामी हो वा कान्तिहीन हो, वा शत्र के घर में होने से म्लान अथवा छोटा हो गया हो तो वह निर्बल होता है और कायसाधक नहीं होता ॥६३।।
यदि कभी कोई ग्रह पापग्रहों से युक्त वा आक्रान्त हो, वा उनसे देखा गया हो, वा उनसे विद्ध हो, वा पराजित हो तो कार्यसाधक नहीं होता। शुभ फल को देने वाले भी ग्रह यदि स्वस्थ न रहें अर्थात् पाप आदि ग्रहों से पराजित होवें तो वे भी अशुभ फल को ही देते हैं ।।६४||
दीप्तावस्था, स्वस्थावस्था, नीचावस्था, प्रसन्नावस्था, पीडितावस्था, शान्तावस्था, खलावस्था, शक्तावस्था और विकलावस्था-ये
1. निसर्गस्तु शनि: A., B. and Bh. 2 'शनि' is missing in A, B, & Bh. 3. निरुचयः for विरुव: Bh. 4. स्वावस्थोचिसकताः सर्वे for स्वावस्थाविकलाः सर्वे A, A1, B. and Bh. 5. सान्तः खलशरुविकला: for शान्तः खलः शक्तो विकल: A,B,& Bh.