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________________ ( २१३ ) धने चक्रं यदा खेटाः कुर्वन्ति मिलिता घनाः । तदा धान्यमचं स्यात्सर्व पण्यौषमध्यतः ॥११५७।। रणे वक्रं यदा यान्ति सर्वेऽपि मिलिता ग्रहाः । तदा धान्यं समर्घ स्यात् जायते भुवि वै मतम् ॥११५८॥ अपात्रदानतोऽपुण्यं पुण्यं सत्पात्रदानतः । इत्यपात्र न दातव्यमर्घकाण्डमहोदयम् ॥११५९॥ प्रतिमास्वल्पदेवानां यावन्तः परिमाणवः ।। तावद्युगसहस्राणि कर्तुर्भोगभुजः फलम् ॥११६०।। इति त्रैलोक्यप्रकाशो ग्रन्थः समाप्तः ।। यदि धन में सब मह मिलकर एकत्रित हो जाय तो सब धान्य महर्ष होता है ॥११५७॥ यदि रण में सब ग्रह मिलकर वक्री हो जाय तो पृथ्वी पर सब घान्य महर्ष होता है ॥११५८॥ अपात्र को दान देने से पाप होता है और सत्पात्र को दान देने से पुख्य होता है, इसलिये अपात्र को महान उदयवाना अर्ष काण्ड नहीं देना चाहिये ॥११५॥ सब देवताओं की जितनी मूर्तियां है उतने सहन महायुग पर्यन्त महान् मुख को भोग करने के लिये पात्र को यह देना चाहिये ॥११६०॥ इति त्रैलोक्यप्रकाशो प्रन्थः समासः ।
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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