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( २०१ ) विलोमं दृश्यते यत्र समर्घ तत्र जायते । उभये विषमे तद्वद् व्याख्यातं च समे समम् ॥ १०८७ ॥ मासस्य प्रवके भूरिभाण्डस्नानेऽणुकं यदि । समषं च तदादिष्टं वीतरागेण जन्मिनाम् ॥ १०८८ ।। उभयोः स्थानके शून्यं महर्षमिति दृश्यते । अर्घान्तरमिति ज्ञात्वा प्रमाणं तत्र कारयेत् ।। १०८९ ।। इति चूडामणिसूक्ष्माक्षगप्रमाणेनापकाण्डम् । मण्डलाभिप्रायेणापि कथ्यते । अग्निमण्डलनक्षत्रैयदा संक्रमते रविः । सहितो भौमवारेण मस्पृहा धातुजातयः ।। १०९० ।। रूप्यसौवर्णकांस्यादित्रपुताम्राणि पित्तलम् । वातधिष्ण्यस्तु सङक्रान्तिः शनौ वारे विशेषतः ॥ १०९१ ॥
यदि विलोम हो अर्थात मास को धवा अधिक हो और भाण्ड की हीन हो तो उस मास में समर्घ होता है। दोनों के विषम होने पर ऐसा फल होता है, और यदि दोनों ममान हो सो ममान फल होता है ।।१०८७॥
यदि मास की ध्रवा अधिक हो और भाण्ट की ध्रवाहीन हो तो समर्घ होगा ऐसा श्रादेश करें ।। १०८८ ।।
यदि दोनों के स्थान में ध्रुवा शून्य हो तो महर्घ होता है, इस प्रकार अर्घान्तर को भी देखकर इसका प्रमाणा करें ।। १०८६ ॥
इति चुडामणिसूक्ष्माचगप्रमागोनार्थकाराम ।
अथ मण्डलाभिप्रायेगापि कथ्यते । यदि अग्निमंडलनक्षत्र में मंगलवार रवि की संक्रान्ति हो तो धातु जाति सस्पृहा होती है ।। १०६० ।।
पदि वायु मंडल नक्षत्र में शनिवार रवि की संक्रान्ति होतो चान्दी मोना, काश्य, पु, नाम्र, पित्तल, आदि धातुओं की विशेष मांग होती है ॥ १०६१ ।।
1. शत० for वात A,