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( १९२ ) आपाव्यां च विनष्टायां नूनं भवति निष्कणम् । अहमायरिक्षपातायः सत्यं नश्यति पूर्णिमा ॥१०३५।। दिनमागे निशामाणि यदा भवन्ति तत्क्षणम् । तत्र मासे भवेदृष्टिर्वातैपि शुभैः शुभा ॥१०३६ ॥ यथाषाढीदिने रात्रिस्तथाषाढश्च निश्चितः । प्रमाणपटिकाः पञ्च पञ्चैव श्रावणः स्मृतः ॥१०३७ ।। पञ्चमाद्रपदो मासस्ततः पञ्चाश्विनः स्मृतः । त्रयाभ्रकुलनाडीषु वातौ पूर्वोत्तरौ यदि ॥ १०३८ ॥ तत्र मासे भवेद् वृष्टिः पवनानादि मानतः । तत्र रात्रावपि ज्ञयाः पवनाभ्राः सर्वदिग्गताः ॥ १०३९ ।। वृष्टयादिरहितैरभैः पूर्णिमा सुखदायिनी । वृष्टिकणान् घनान् दत्ते पर्वाद्युत्पातवर्जिताः ॥ १०४० ।।
यदि आषाढ़ी पूर्णिमा नष्ट हो तो निश्चय धान्य नहीं होता, महा मादितथा नक्षत्रपात से पूर्णिमा नष्ट होती है ॥ १०३५ ।।
दिन या रात्रि में जिस क्षण में मेघ दीख पडे उस मास में वर्षा होती है और शुम वायु से शुभ होता है ॥ १०३६ ।।।
भाषाढ़ी पूर्णिमा की रात्रि में श्राषाढ़ का निश्चय करें, पांच पांच षटीका एक एक मास का प्रमाण होता है, इस तरह पांच घटी का प्रावण मास दुधा ॥ १०३७ ।।
। पांच घटी का माद्रमास, और पांच घटी का आश्विन मास, मासों में जिस मास के घटीविभाग में मेघ तथा पूर्वी उत्तरी वायु
उस मास में वायु तथा मेष आदि के मान से वर्षा होती है. और उस रात्रि में भी सब दिशाओं में वायु तथा मेष, आदि का विचार बरें॥ १०३६ ॥
: वृद्धिादि से तथा उत्पात से रहित मेघ पूणिमा में दिखाई देतो पर पूर्णिमा मुख, वर्षा, धान्य, तथा धन प्रादि देने वाली होती है॥ १०४०॥
1. प्रथम for प्रमाण A. 2. यत्रामा tor या A.
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