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(१ ) जीवात्रिके तमः सौरियामा एम्यो गुरुस्त्रिके। अन्योऽन्यं पश्चके. जीवे देहि लाहि त्रिके कमात्॥१००१॥ मासार्घवर्षाः । .. त्रिके यदि ग्रहाः सर्वे जीवान्मन्दतमः कुजः । तदा मुकि महर्ष स्वात्तियो वृद्धौ विशेषतः ॥१००२ ॥ यदा स्याज्जीक्योमेन मटके विण्यपथके। तदा क्रिश्चिन्महर्ष स्यात् सौम्यवासरगं पुनः ॥ १००३ ॥ पञ्चके चेद्ग्रहाः सर्वे संमिलन्ति यदैव हि । तदा भुवि महघ स्याद् धिष्ण्यहानी विशेषतः ॥ १००४ ॥ गशिपञ्चकयोगे तु धिष्ण्यत्रिकं यदा भवेत् । तदा किश्चित्सम स्यात्सौम्यवक्रे शुभं बहु ॥ १००५ ॥
संसिरा तु यदा जीवो राशिनक्षत्रपश्चके । • पोरं दौस्थ्यं तदा ज्ञेयमृक्षे न्यूनेति गौरवम् ॥१००६॥ - गुरु से त्रिक में राहु, शनि, मंगल, हो और उन से त्रिक मे गुरु हो या परस्पर दोनों पञ्चक में हों तो भयाणक वस्तु देनी चाहिये, यदि दोनों परस्पर त्रिक में हों तो उस वस्तु को ग्रहण करें ।।१००१॥
अथ मस्सा वर्षा:
याद जीव से त्रिकम शनि, राहु, मंगल हों तो पृथ्वी में मार्क होता है, और तिथि वृद्धि हो सो विशेष महर्ष होता है ।।१००२॥
यदि त्रिक, या पक्षक नक्षत्र में जीव का योग हो तो कुछ महग होती है और शुभ ग्रहों का योग हो तो विशेष मेंहग होती है ।।१००३॥
पत्रक में सब ग्रह सम्मित हो जाय तो पृथ्वी में महर्ष होता है. और नक्षत्र का क्षय हो तो विशेष महर्ष होता है ॥१००४॥
पाक, तथा त्रिक, नक्षत्र राशि के योग से कुछ समर्थ होता है, भोर महों को या होने पर बहुत शुभ होता है ||१००५।।
संसिरा जीव यदि पक्षक राशि नक्षत्र में हो सो घोर, दौस्थ्य होता और नक्षत्र का सब होने से अत्यन्त गौरव होता है ॥१००६॥
केप्यते लाह for जीवे देहि लाहिं Bh. 2. धषिक for: पास A, योगेषिकं Bh. पके for Bh. 4. महरा for सासरा Bb.