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४४.
४४४
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४५०
(१०) दुर्भगा उषा सुभगा नया लक्षण
४३५ स्त्रीसम्पति योग अन्यपति की पछा पति के साथ स्वेच्छा पूर्वक रमण पतिपरित्यक्ता योग तथा यौवन में वार्द्धक योग ४३६ पतित्यका योग, पतिमृत्युयोग, सौभाग्यवतीयोग योनिदोषबतो स्त्रीयोग तथा पतिप्रिया स्त्रीयोग ४४१ ऋतुकाल में वर्ण्य नक्षत्र
४४२ घोरतिमुखयोग युवक को स्त्रीसुखयोग दुःख मुख योग तथा केवल मुखयोग मैथुनसुख
४४६-४४७ मुवासित मैथुन
४४८ मानन्दशून्य मैथुन
४४६ तीन बार मथुन उत्तम तथा जीर्ण देवालय में मैथुन रसोई घर में समय मैथुन, जलाश्रय स्थान में सानन्द मैथुन४५२ वापी मेथुन त्या कुञ्ज मैथुन
४५३ गर्त मैथुन, गोशाला मैथुन
४५४ परचक्रागमनप्रकरण रात्र के आक्रमण तथा अनाक्रमण का योग ४५५-४५७ शत्रु के लौटने का योग, तथा दो बार पाने का योग, पराजय का योग
४५८ शत्रु लौटने का योग
४५६ शत्रु के भाक्रमण तथा अनाक्रमण के योग ४१०-४१६ मार्ग में शत्रु को मृत्यु शत्रु का मार्ग में लौटना
४६८ गमनागमनप्रकरण माना जाना भासानी से तथा बिलम्ब से होना ४६६ यात्राज्ञान
४७०-४७५ गमनागमन की निष्फलता पुत्र परदेश से कबोटेगा?
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