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________________ ( १३६ ) तदार्द्धष्षृष्टि देश्या सौम्यासौम्यप्रमाणतः । सजलराशयो लमे शुभाशुभग्रहैर्युताः ।। ७२८ ।। त्रिभागवृष्टिरादेश्या दृष्टिज्ञान विशारदे : । शुष्कलनगतैः कर वृष्टिरोधः प्रकीर्तितः ॥ ७२९ ।। लग्नतस्तुर्यगे सौरे दुर्भिक्षं च सविग्रहम् । वृष्टिप्रश्ने कुजे मृत विद्यल्लपति चञ्चला || ७३० ॥ घनगर्जनसंयुक्ता भवेद्दृष्टिर्गरीयसी । 2 लग्ने शुक्रः कुजश्चन्द्रः शनिश्र मिलिता यदि ।। ७३१ ॥ अतिवृष्टिस्तदादेश्या नानाचित्रकरी जने । सवातकरका दृष्टिर्विद्यचलति सर्वतः ।। ७३२ ।। शनिनेन्दोविनाशित्वात् कर कैर्वर्षणं धनम् । 3 दृष्टियोगे चरे लग्ने वृष्टिर्द्वादश यामकः || ७३३ ॥ शुभ अशुभ के प्रमाण से आधी वृष्टि कहनी चाहिये । जलचर राशि लम में हो और शुभाशुभ ग्रह से युक्त हो तो ।। ७२८ ।। त्रिभाग वृष्टि वर्षा के जानने वाले पंडितों को कहना चाहिये, और शुष्क राशि लभ हो उस में पाप ग्रह हो तो वर्षा नहीं होती है || ७२६ ॥ लग्न से चतुर्थ स्थान मे शनि हो तो विग्रह के साथ दुर्भिक्ष होता है, और वर्षा के प्रश्न में मंगल जम में हो तो विद्यत बहुत चपलता साथ चलती है || ७३० ॥ और मेघों के बहुत गर्जन शब्दों के साथ वृष्टि होती है, यदि लभ शुक्र, मंगल, चन्द्रमा, शनि ये सब मिल कर स्थित हों तो ||७३१|| उक्त योग में बहुत दृष्टि होती है और करकापात होता है वायु बहुत चलती है। चारों तरफ से विद्युत चलती है जिस से लोक विचित्र होते हैं ।। ७३२ ।। यदि चन्द्रमा से अष्टम स्थान में शनि हो तो करकापात के साथ वृष्टि होती है। यदि दृष्टि योग में चर लग्न में हो तो बाहर प्रहर तक दृष्टि होती है ।। ७३३ । 1. सजला for सजल Bl. 2. जनै: for जने Bh. 1. शेन्दो for नेन्दो A. A 1, ०जेन्दु० Bh.
SR No.009389
Book TitleTrailokya Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhsuri
PublisherIndian House
Publication Year1946
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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