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सितयुक्ते शनौ तुंगे गुरुयुक्ते विलोकिते ।
जायते धार्मिको राजा राजपूज्यो गुरुव वा ॥ ७०२ ॥ क्रियते केवलादर्शो दीक्षासिद्धिप्रकाशकः । श्रीमद्देवेन्द्र शिष्येण श्रीहेमप्रभरिणा ।। ७०३ ॥ इति भाग्यभवने प्रब्रज्याप्रकरणम् ॥ अथ दशमे पदप्रकरणम् ।
हर्षावस्थे नभोनाथे तुङ्गादिस्थे शुभेक्षिते । चित्ते केन्द्र त्रिकोणस्थे राज्यादिपदलब्धयः || ७०४ ॥ मूर्तिपत्युच्चनाथेन स्वच्चादिस्थेन वीक्षितः । ददात्येव पदावा लग्ने लग्नेश्वरो यदि || ७०५ ।।
यदि का शनि शुक्र से वा बृहस्पति से युक्त हो वा देखा आय तो वह धार्मिक राजा होता है, वा राजपूज्य गुरु होता है || ७०२ ||
श्रीमान् देवेन्द्र के शिष्य हेमप्रभसूरि ने इस त्रैलोक्य प्रकाश नाम के ग्रन्थ में दीक्षासिद्धि के प्रकाश करने वाले केवल आदर्श को किया ||७०३|| इति भाग्यभवने प्रव्रज्याप्रकरणम
अथ दशमे पदप्रकरणम्
दशमेश उच्चादि में स्थित होकर हर्षस्थान में हो और शुभ ग्रहों से देखा जाता हो और धनेश, केन्द्र, त्रिकोण में हो तो राज्यादि पद का लाभ होता है ||७०४ ॥
अष्टमेश, यदि अपने उच्च के स्वामी से और स्वोच स्थित ग्रह से देखा जाता हो इन योग में यदि लग्नेश, लम में हो तो पद की प्राप्ति होती है ||७०५||
1. युक्तt for युक्ते A. 2. शस्त्रैलोक्यस्य for ०शदीक्षासिद्धि A 3. हर्षावस्थानभोनाथे for हर्षावस्थे नभोनाथे ms. 4. वित्ते for चित्ते Bh.
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