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पंधनं धरणं नौश्च फलेन सदृशं त्रयम् । म्रियते येन योगेन तेन योगेन मुच्यते ॥ ६६३॥ लातुर्यसुधीहर्षलाभेशाः सततोदिताः । दैवादपि न मृत्युः स्याद्रोगाद्वा शस्त्रसंकटात् ।। ६६४ ॥ जीवितमृत्युपृच्छायां लमं शुक्रो बली यदि जीवत्येवं तदावश्यं शस्त्रविद्धोऽपि मानवः ।। ६६५ ।। यदि पृच्छति मन्दोऽयं जीविष्यत्यथवा नहि । लमेशश्चेत्तदोदेति जीवत्येव तदा ध्रुवम् ॥ ६६६ ॥ नन्दा षट् कृत्तिका भौमे भद्राश्लेषा बुधे सिते । धनिष्ठादिषटकं रिक्ता मघामनुजया गुरौ ॥ ६६७ ॥ भरण्यां च शनी वारे पूर्णा स्याहवयोगतः । उत्पद्यते यदा रोगो म्रियते प्रतयोगतः ।। ६६८ ॥
इति छिद्रे जीवितमृत्यु प्रकरणम् ।। मृत्यु, बन्धन, नौका का आगमनादि ये तीनों फल में समान है, रोग प्रश्न में जिस योग से मरता है, बन्धन प्रश्न मे उस योग से छुटता है । नौका प्रश्न में नौका कुशल पूर्वक आती हे ।।६६३
लमेश, चतुर्थश, पञ्चमेश, हर्षेश, लाभेश यं सदोदित हों तो उस को देव से, या रोग से, या शस्त्रादि संकटों से भी मृत्यु नहीं होती ॥६६४||
ओवन, मरण के प्रश्न मे लम मे यदि बलवान् शुक्र हो तो शत्र से विद्ध भी मनुष्य अवश्य जीता हे ।। ६६५ ॥
यदि पूछे कि यह रोगी जावेगा या नहीं उस मे लग्नेश यदि उदित हो तो अवश्य जीवेगा ऐसा कहना चाहिये ।।६६६।।
यदि मंगल दिन नन्दा (१।६ । ११) तिथि और कृत्तिका से क नक्षत्र हों, बुध और शुक्र दिन भद्रा (२१७। १२) तिथि अश्लेषा नक्षत्र, वृहस्पति वार धनिष्ठादि छः नक्षत्र रिक्ता और मघा, (४।६।१४) तिथि हो।।६६७॥
और शानवार देवयोग से भरणी नक्षत्र, और पूर्णा (५।१०।१५) तिथि हो आय, तिथि नक्षत्र विशिष्ट इन दिनों में यदि रोग उत्पन्न हो तो प्रेस के योग से मनुष्य मर जाते हैं ।।६६८
1. प्रेतगोऽपि सः for प्रेतयोगत: Bh.