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( १२० ) भौमे च शाकिनीदोषो दृष्टिदोषस्तथा। परैः । बुधे च भूतजो दोषो जीवे पितृसमुद्भवः ॥६४३॥ दोषस्तु चन्द्रशुक्राम्यामाकाशजलमात्रतः । उदयात्प्रहरौ द्वौ तु चन्द्रे यान्त्यास्तु गच्छति ॥६४४|| व्यावृत्तदेव्या दोषोऽयं चन्द्रे पराहगे मवेत् । नीचे चन्द्र भवेनीचो दुस्साध्यो बलिपूजितः ॥६४५॥ सौम्ये चन्द्रे शुभा देवी क्रूरा कृष्णार्दपक्षके । छिद्रे भौमस्थिते सूर्ये स्वोच्चमावेऽपि तिष्ठति ॥६४६॥ रक्तबन्धे ध्रुवं जाते नाम्याधस्तापमादिशेत् ।। उष्णवातादिपीडा स्यात् स्वोच्चभावेऽपि तिष्ठति ॥६४७।।
मंगल अष्टम में हो तो शाकिनीकृत दोष होता है तथा बहुत भाचार्यों के मत से दृष्टि दोष होता है, और बुध हो तो भूत कृत दोष, वृहस्पति हो तो पितृ-कृत दोष होता है ॥६४३।।
यदि चन्द्रमा, शुक्र अष्टम मे हों तो आकाश और जलकृत दोष होता है, उदय से दोपहर के अन्दर चन्द्रमा यदि अष्टम में हो तो वायु कृत दोष होता है ।।६४४॥
और दो प्रहर के बाद चन्द्रमा अष्टम में हो तो व्यावृत्त देवी के कोप से दोष होता है, यदि चन्द्रमा नोच में हो तो नीच होता है बलि पूजा से भी दुःसाध्य होता है ।।६४।।
शुक्रपक्ष के चन्द्रमा शुभ कारक होते हैं और कृष्णपक्ष के चन्द्रमा कर होते हैं। यदि मंगल अष्टम में हो सूर्य का होने पर भी रक्तबन्ध में नामी के नीचे ताप होता है और गर्मी तथा वात इत्यादिक पीड़ा होती है, य में रहने पर भी ये पीड़ा होती है ।।६४६-४४४॥
1. The portion beginning with OFTETT 7: and ending with परक्षेत्रे is missing in A AL. 2. परः for परैः Bh. 3 ०काशे जलमात्रतः Bh. 4 वान्या for यात्या Bh. b. तू for Bh.