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( ११८ ) न्यये कर्मणि मृत्यौ च भौमे 'शस्त्रहताश्च ये। एवं योगे ग्रहर्जाते शाकिनीगोत्रपीडिकाः ॥६३२॥ बुधो गुरुः सितः सौरी राहुश्च व्ययसप्तगः । अरण्योचमदेवौ च ततोऽपि जलमातरः ॥६३३॥ चण्डालाश्च क्रमाज्ञया दोषप्रश्ने हि पीडकाः । अष्टमे खेचरः करर्दोषश्च व्यभिचारकः ॥६३४॥ केन्द्रकोणगे दोषस्त्वष्टमे द्वादशेपि वा । चन्द्र देव्यो रवी देवा भौमे स्वकुलगोत्रजाः ॥६३५।। बुधे विचित्रजो दोषः किं वा कामणसम्भवः । गुरावामकृतो दोषः शुक्र शुक्रकृतस्तथा ॥६३६॥
मंगल जिसके जन्म समय में व्यय, कर्म, और अष्टम, भाव में हो तो इस योग में वे जो शस्त्र से मरे हैं उनसे और शाकिनी के समूह से पीड़ित होते हैं ॥६३२॥
बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, ये व्यय, और सप्तम भाव में हों तो क्रम से अर्थात बुध हो तो अरण्य देवता, गुरु हो तो उत्तम देवता, शुक्र हो तो जलमातृगण ॥६३३॥
शनि और राहु हो तो चाण्डालों से पीड़ित होते हैं ऐसे दोष का प्रश्न करने पर प्रश्न लग्न से इस स्थिति के अनुसार फल सममें और यदि अष्टम भाव में पापग्रह हो तो दोष का व्यभिचार होता है॥६३४॥
केन्द्र, त्रिकोण में पापग्रह हो तो दोष होता है. वा अष्टम, द्वादश से भी दोष होता है । चन्द्रमा से देवी का अपद्रव, रवि में देवता का, मंगल में अपने वंशजों से कृत पीड़ा होती है॥६३५॥
बुध से नाना प्रकार के दोष वा कम से उत्पन्न दोष होता है, गुरु से वामकृत दोष, शुक से वीर्यकृत दोष होता है ॥६३६॥
1. शत्रु० for शस्त्र A. 2. ०हता भयं for ०हताश्च ये Bh. 3. शोरी for सौरी A. 4. The ms reads सौरिराहू च व्ययसप्तमे for सौरी...सप्तगः 6. दोषाः स्युरभिचारकाः for दोषश्च व्यभिचारक: A., Bh.