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सप्तमे धिषणे शुक्रे रूपलावण्यशालिनी। आये पितृकुले ' जाता कर्णविश्रान्तलोचना ॥४०८॥ बालः शशी बुधश्चापि कुमारी ब्रुवतः स्त्रियम् । रूपोपेतां प्रसूतां च गुरुर्वक्ति नितम्बिनीम् ॥४०९॥ शुभग्रहो गुरुः प्रश्ने सर्वांगधुतिशालिनीम् । सौम्येक्षितस्तु शुक्रोपि सलावण्यां सुलोचनाम् ।।४१०॥ तेजोयुक्तां कुजो व्रते रामां रूपेण वर्जिताम् । शनिराहू च सक्रूरौ दुर्गुणां वदतोऽवशाम् ॥४११॥ वृद्धा रविः शनिश्चापि जरती योषितं पुनः। शुक्रभौमौ च खेटौ द्वौ वदतो हन्त कर्कशाम् ॥४१२॥ यदि पृच्छति नार्येषा दृष्टदोषा कुमारिका । अदृष्टपुरुषा साध्वी निर्दोषा स्यात्कुमारिका ॥४१३॥
सप्तमस्थान में यदि गुरु और शुक्र रहें तो स्त्री, रूप-लावण्य-युक्त, कुलीना तथा विशाल नेत्रों वाली होती है ॥४०८॥
जिसकी जन्मकुण्डली में चन्द्र और बुध बाल्यावस्था को प्राप्त हों तो कुमारी स्त्री मिले । यदि गुरु रहें तो सन्दरी स्त्री मिले ॥४०६ ॥
प्रश्नकाल में गुरु शुभग्रह में हों तो सर्वांगसुन्दरी स्त्री की प्राप्ति हो। यदि शुक्र शुभग्रहों से देखे जाय तो लावण्यवती सुनेत्रा.स्त्री की प्राप्ति हो ॥ ४१०॥
मंगल रहे तो स्त्री तेजवाली किन्तु रूपरहित होगी शनि और राहु यदि किसी अन्य भी पापग्रहों से युक्त हों तो स्त्री दुर्गुण और पराधीन होवे ॥ ४११ ॥
___ रवि रहे तो वृद्धा, शनि रहे तो भी वृद्धा, शुक्र और मंगल हो तो कर्कशा स्त्री होती है ॥ ४१२॥ __यदि प्रश्न हो कि यह स्त्री दोषयुक्त कुमारिका अथवा दोषरहित पतिव्रता है ॥ ४१३ ॥ ____ 1. गृहे for कुले A. 2. In A, A1 this line follows the next line beginning with लग्नलग्नेश