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________________ इसलिए यह जीव अनादि से इसी प्रकार स्वयं को ठगता आया है। इसलिए सर्व आत्मार्थियों को हमारी प्रार्थना है कि आप अपने जीवन में अत्यंत सादगी अपनाकर पुद्गल की आवश्यकता बने उतनी घटाना और आजीवन प्रत्येक प्रकार के परिग्रह की मर्यादा करना अर्थात् संतोष रखना परम आवश्यक है कि जिससे स्वयं एकमात्र आत्मप्राप्ति के लक्ष्य के लिए ही जीवन जी सके, जिससे वे अपने जीव को अनंत दुःखों से बचा सकते हैं और अनंत अव्याबाध सुख प्राप्त कर सकते हैं। इस पुस्तक में हमारी कुछ भी भूल हुई हो तो आप सुधारकर पढ़ना और हम से जिन-आज्ञा से विरुद्ध कुछ भी लिखा गया हो तो हमारा त्रिविध-त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं। आत्मार्थी को दंभ से हमेशा दूर ही रहना चाहिए अर्थात् उसे मन, वचन और काया की एकता साधने का अभ्यास निरंतर करते ही रहना चाहिए और उसमें अड़चनरूप संसार से बचते रहना चाहिए। ५४* सुखी होने की चाबी
SR No.009385
Book TitleSukhi Hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherJayesh Mohanlal Sheth
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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