SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऐसी अनेक शुभ उपमा से बिराजमान जो-जो साधु-साध्वियाँ वीतरागदेव की आज्ञा में जहाँ-जहाँ विचरते हों, वहाँ-वहाँ उनको मेरी समय-समय की वंदना हो। सामायिक पालना अथवा संवर तीन नमोकार मंत्र गिन के पालना। सूर्यास्त के समय भी उपरोक्त प्रतिक्रमण करना, पश्चात् वाँचन, मनन, चिंतन, ध्यान करना। उसमें चिंतन करना कि यह देह तो कभी भी छूटनेवाला ही है, तो इसकी ममता अभी से ही क्यों नहीं छोड़नी? अर्थात् देह की ममता तत्काल छोड़ने योग्य है। मेरी अनादि की यात्रा में यह देह तो मात्र एक विश्राम ही है, और इस विश्राम में यदि मैं मेरा काम न कर लूँ तो फिर अनंत काल तक नंबर लगे (अवसर आए) ऐसा नहीं है। इसलिए भगवान ने यह मेरा अंतिम दिन है ऐसा जीने को कहा है। इसलिए देह, पैसा, परिवार का मोह छोड़कर, मात्र अपने आत्मा के लिये ही चिंता, चिंतन, मनन, ध्यान करने योग्य है-मेरे आत्मा ने इन चार गति, चौबीस दंडक, चौरासी लाख जीव योनि में अनादिकाल से परिभ्रमण करते हुए अनंतअनंत भव किये हैं, अनंत जीवों के साथ रिश्तेदारी और संबंध बनाया है और सबको निज माना है। ममत्वभाव से बहुत परिग्रह एकत्रित करके मेरा माना है परंतु आज से मुझे प्रभु! आपकी कृपा से भान हुआ इसलिए उन सर्व को अरिहंत, अनंत सिद्ध भगवंतों की साक्षी से अंत:करणपूर्वक मन, वचन, काया से २८ * सुखी होने की चाबी
SR No.009385
Book TitleSukhi Hone ki Chabi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayesh Mohanlal Sheth
PublisherJayesh Mohanlal Sheth
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy