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होता है ? इस प्रकार जैसे द्रव्यात्मा और कषायात्मा का संबंध कहा, वैसे द्रव्यात्मा और योगात्मा का संबंध कहना। (अर्थात् जिसे द्रव्यात्मा होता है, उसे योगात्मा कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता, परंतु जिसे योगात्मा होता है, उसे तो अवश्य द्रव्यात्मा होता है।)”- ऐसा श्री भगवतीजी (भगवई विवाहपन्नत्ति) सूत्र १२में शतक उद्देसो १०में बताये अनुसार द्रव्यात्मा प्रत्येक जीव में होता है। अर्थात् वह मिथ्यात्वी हो या सम्यग्दर्शनी हो; छद्मस्थ हो या केवली हो; संसारी (सशरीरी) हो या सिद्ध (अशरीरी) हो प्रत्येक जीव को द्रव्यात्मा होता है। इससे समझ में आता है कि द्रव्यात्मा, वही हमने ऊपर बताये अनुसार शुद्धात्मा (अशुद्ध जीवत्वभाव अर्थात् अशुद्धरूप परिणमित आत्मा में से अशुद्धि को गौण करते ही, जो जीवत्वरूप भाव शेष रहता है वह) है और उसी शुद्धात्मा की बात हमने इस पुस्तक में समझायी है। ___अब हम यही बात दृष्टांत से देखते हैं। जैसे मलिन पानी में शुद्ध पानी छिपा हुआ है, ऐसे निश्चय से जो कोई उसमें फिटकरी (ALUM) फिराता है तो अमुक समय बाद उसमें (पानी में) रही हुई मलिनरूप मिट्टी तल में बैठ जाने से, पूर्व का मलिन पानी स्वच्छरूप ज्ञात होता है। इसी प्रकार जो अशुद्धरूप (राग-द्वेषरूप) परिणमित आत्मा है, उसमें विभावरूप अशुद्धभाव को बुद्धिपूर्वक गौण करते ही जो शुद्धात्मा
सुखी होने की चाबी * ११